पाकिस्तान के सिंध प्रांत में इन दिनों एक नई आजादी की लहर तेज़ी से उभर रही है। यहां के लोगों में पाकिस्तान सरकार और सेना के प्रति गहरा आक्रोश देखा जा रहा है। एक ओर जहां बलूचिस्तान में दशकों से आजादी की मांग चल रही है, वहीं अब सिंध के लोग भी खुलकर 'सिंधुदेश' की स्थापना की मांग कर रहे हैं। इस मांग के साथ कई संगठनों ने पाकिस्तान की एकता और अखंडता को खुली चुनौती दे दी है। सिंध में हो रहे यह घटनाक्रम अब सिर्फ स्थानीय विरोध तक सीमित नहीं रहे, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।
सिंध में हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शन केवल नारेबाज़ी तक सीमित नहीं रहे, बल्कि इन रैलियों में अंतरराष्ट्रीय झंडे भी लहराए गए और पाकिस्तान के खिलाफ नारों के साथ साथ आजादी की खुली मांग की गई। जेय सिंध मुत्ताहिदा महाज (JSMM) और जेय सिंध फ्रीडम मूवमेंट (JSFM) जैसे संगठनों ने यह आंदोलन और तेज़ कर दिया है।
सिंध में हो रहे प्रमुख विरोध और रैलियाँ
सिंध में जिस तरह से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उससे साफ़ है कि यहां के लोग अब पाकिस्तान की शासन प्रणाली से पूरी तरह असंतुष्ट हो चुके हैं। हाल ही में 17 जनवरी 2025 को सिंधुदेश आंदोलन के संस्थापक जी.एम. सैयद की जयंती पर JSMM ने एक भव्य रैली का आयोजन किया। इस रैली में भारत और अन्य देशों के झंडे लहराए गए और संयुक्त राष्ट्र से अपील की गई कि सिंध को आज़ाद राष्ट्र घोषित किया जाए। JSMM के निर्वासित नेता शफी बुरफत ने पाकिस्तान को ‘धार्मिक उग्रवाद का अड्डा’ बताया और इसे ऐतिहासिक राष्ट्रों के लिए एक खतरा करार दिया।
इसी प्रकार 2 दिसंबर 2024 को सिंधी सांस्कृतिक दिवस पर JSFM द्वारा कराची, कोटरी और कंडियारो में कई शांतिपूर्ण रैलियाँ निकाली गईं। इन रैलियों में सिंधी संस्कृति के प्रतीक जैसे अज्रक और सिंधी टोपी पहने हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। रैली में सिंध की संस्कृति और भाषा की रक्षा की मांग की गई तथा पाकिस्तान के पंजाबी वर्चस्ववाद के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की गई।
बाबरलोई धरना और जल संकट पर आंदोलन
सिंध की जनता केवल आजादी की मांग ही नहीं कर रही, बल्कि वे स्थानीय मुद्दों पर भी खुलकर आवाज उठा रही है। अप्रैल 2025 में बाबरलोई शहर में सिंध के जल संसाधनों की रक्षा को लेकर एक लंबा धरना चला। इस आंदोलन में वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और आम नागरिक शामिल हुए। उन्होंने आरोप लगाया कि पाकिस्तान सरकार सिंचाई परियोजनाओं के नाम पर सिंध के जल संसाधनों को पंजाब की ओर मोड़ रही है, जिससे स्थानीय किसानों का जीवन संकट में आ गया है। इस धरने के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग कई दिनों तक बंद रहा और आर्थिक गतिविधियाँ बाधित हुईं।
आर्थिक और सैन्य टकराव की स्थिति
सिंध में विरोध प्रदर्शन केवल सांस्कृतिक या राजनीतिक दायरे तक सीमित नहीं रहे, बल्कि इसका असर आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ा है। अप्रैल 2025 में जब आजादी के समर्थन में जोरदार प्रदर्शन हुए, तब सिंध के विभिन्न हिस्सों में लगभग 7,000 ट्रक फंसे रह गए, जिससे व्यापार पूरी तरह प्रभावित हो गया। इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों ने पाक सेना के वाहनों पर भी हमला किया, जिससे कानून व्यवस्था की स्थिति और बिगड़ गई। यह साफ दर्शाता है कि सिंध की जनता अब केवल शांतिपूर्ण आंदोलन से संतुष्ट नहीं है, बल्कि अब यह आंदोलन एक व्यापक विद्रोह का रूप ले रहा है।
प्रमुख घटनाओं का सारांश
तिथि | स्थान | संगठन/घटना | मुख्य उद्देश्य |
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17 जनवरी 2025 | सन्न, सिंध | JSMM द्वारा रैली | सिंधुदेश की मांग, अंतरराष्ट्रीय समर्थन की अपील |
2 दिसंबर 2024 | कराची, कोटरी आदि | JSFM रैली | सिंधी संस्कृति की रक्षा और स्वतंत्रता की मांग |
अप्रैल 2025 | बाबरलोई | धरना आंदोलन | सिंध के जल संसाधनों की रक्षा |
अप्रैल 2025 | पूरे सिंध में | विरोध प्रदर्शन और ट्रकों का फंसना | स्वतंत्रता की मांग और सैन्य टकराव |
सिंध की आजादी: एक ऐतिहासिक संघर्ष
सिंध की आजादी की मांग कोई आज की बात नहीं है। यह आंदोलन वर्षों पुराना है। जी.एम. सैयद जैसे नेताओं ने वर्षों पहले ही सिंध को पाकिस्तान से अलग करने की मांग की थी। उनका मानना था कि सिंध की सांस्कृतिक, भाषाई और ऐतिहासिक पहचान पाकिस्तान में दबा दी गई है। पाकिस्तान के निर्माण के समय सिंध की स्वायत्तता का वादा किया गया था, लेकिन समय के साथ ये वादे खोखले साबित हुए।
निष्कर्ष: क्या सिंध बन पाएगा नया देश?
सवाल यह उठता है कि क्या सिंध वास्तव में पाकिस्तान से अलग होकर एक नया देश बन पाएगा? इसका जवाब आसान नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि वहां की जनता अब और चुप नहीं बैठने वाली। सिंधी युवा वर्ग, छात्र, महिलाएं और बुजुर्ग सभी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार और सेना पर बढ़ते दबाव को देखते हुए आने वाले समय में यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंच पर और अधिक चर्चा का विषय बन सकता है।
सिंध की यह क्रांति अब केवल एक क्षेत्रीय आंदोलन नहीं रह गया है, बल्कि यह पाकिस्तान की एकता और अखंडता को सीधी चुनौती दे रहा है। अगर पाकिस्तान ने सिंध के लोगों की मांगों की अनदेखी की, तो यह आंदोलन और अधिक उग्र रूप ले सकता है।
स्रोत: नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें