पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को लेकर सोशल मीडिया पर कई भ्रामक जानकारियाँ सामने आ रही हैं। हाल ही में एक झूठी खबर ने सोशल मीडिया पर जोर पकड़ लिया कि इमरान खान को हिरासत में यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया गया है। लेकिन जब इस दावे की पड़ताल की गई तो साफ हुआ कि इस प्रकार की कोई भी घटना आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं हुई है। न ही किसी प्रतिष्ठित मीडिया संगठन या मानवाधिकार संस्था ने ऐसे किसी भी मामले की जानकारी दी है।
इमरान खान को अप्रैल 2022 में सत्ता से हटाए जाने के बाद से कई कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। उनके ऊपर भ्रष्टाचार से लेकर गोपनीय दस्तावेज़ों के लीक होने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। अक्टूबर 2023 में उन पर राज्य के गुप्त दस्तावेजों को लीक करने के आरोप में केस दर्ज हुआ, जिसमें 14 साल तक की सज़ा का प्रावधान है। इन कानूनी कार्रवाइयों के बावजूद, अब तक किसी विश्वसनीय रिपोर्ट या मेडिकल दस्तावेज़ ने यह पुष्टि नहीं की है कि इमरान खान हिरासत में यौन हिंसा के शिकार हुए हैं।
यह समझना ज़रूरी है कि सोशल मीडिया पर गलत जानकारी बहुत तेजी से फैलती है। खासकर जब किसी प्रमुख राजनेता की बात हो, तो बिना किसी ठोस प्रमाण के कई अफवाहें वायरल हो जाती हैं। इसी कड़ी में एक फर्जी पत्र भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिसमें दावा किया गया कि इमरान खान और पाकिस्तानी सरकार के बीच कोई "नो रेप एग्रीमेंट" हुआ है। हालांकि, बाद में इस पत्र को पूरी तरह से झूठा और फर्जी करार दिया गया।
मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारी बयानों की गहन जांच के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि इमरान खान के साथ ऐसा कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ है। किसी भी आधिकारिक संस्थान ने ऐसी किसी भी घटना की पुष्टि नहीं की है। यह भी देखा गया है कि कुछ तत्व जानबूझकर इस प्रकार की खबरें फैला रहे हैं ताकि राजनीतिक माहौल को प्रभावित किया जा सके।
इमरान खान के समर्थकों और विरोधियों दोनों को यह समझने की ज़रूरत है कि जब तक किसी घटना की पुष्टि किसी भरोसेमंद स्रोत से न हो, तब तक उस पर विश्वास करना अनुचित है। खासकर जब मामला इतना संवेदनशील हो, तो ऐसी अफवाहें ना सिर्फ राजनीतिक माहौल को बिगाड़ती हैं, बल्कि आम जनता के बीच भ्रम भी पैदा करती हैं।
यह मामला एक बड़ा उदाहरण है कि कैसे सोशल मीडिया का उपयोग गलत सूचनाएं फैलाने के लिए किया जा सकता है। ऐसे मामलों में आम लोगों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे केवल विश्वसनीय स्रोतों से ही जानकारी लें। अगर किसी को किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों को लेकर कोई चिंता है तो उसे संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी मान्यता प्राप्त मानवाधिकार संस्थाओं की रिपोर्ट्स को देखना चाहिए।
इमरान खान के मामले में कोई भी दावे तब तक विश्वसनीय नहीं माने जा सकते जब तक उनके पक्ष या उनके वकीलों द्वारा या किसी आधिकारिक मेडिकल जांच के आधार पर पुष्टि न की जाए। फिलहाल की स्थिति में, यह कहना गलत नहीं होगा कि सोशल मीडिया पर चल रही यौन उत्पीड़न से जुड़ी खबरें निराधार और मनगढ़ंत हैं।
इस पूरी घटना से यह सबक जरूर मिलता है कि हमें हर वायरल खबर पर आँख बंद कर विश्वास नहीं करना चाहिए। खबर की सच्चाई जानने के लिए उसका स्रोत जांचना बेहद ज़रूरी है। लोकतांत्रिक देशों में प्रेस की स्वतंत्रता एक बड़ा हथियार है, लेकिन जब यही प्रेस या सोशल मीडिया बिना पुष्टि के खबरें फैलाते हैं, तो यह स्वतंत्रता ज़िम्मेदारी में बदल जानी चाहिए।
इसलिए, आने वाले समय में किसी भी बड़े राजनेता या प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में कोई भी सनसनीखेज दावा सुने, तो पहले उसकी सच्चाई की तह तक ज़रूर जाएं। इमरान खान जैसे वैश्विक नेताओं पर लगे आरोपों को राजनीतिक और मानवाधिकार दोनों दृष्टिकोणों से संतुलित नजरिए से देखना समय की मांग है।