केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में विपक्ष द्वारा लगाए जा रहे आरोपों पर करारा प्रहार किया है। विपक्ष का कहना है कि वर्तमान सरकार में बोलने की आज़ादी नहीं रही और देश में ‘अघोषित इमरजेंसी’ जैसी स्थिति बन चुकी है। इस पर अमित शाह ने तीखा जवाब देते हुए कहा, “कैसे मालूम पड़ा? बोले तब मालूम पड़ा ना।” उन्होंने विपक्ष को याद दिलाया कि जिन्होंने 1975 की असली इमरजेंसी नहीं देखी, उन्हें आज के लोकतांत्रिक माहौल को इमरजेंसी कहना शोभा नहीं देता। उनका यह बयान सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है।
अमित शाह ने विपक्ष विशेषकर कांग्रेस पार्टी पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि असली इमरजेंसी परिस्थितियों की वजह से नहीं, बल्कि नेताओं की मानसिकता की वजह से आती है। उन्होंने कांग्रेस को याद दिलाया कि उसने 1975 में सत्ता में बने रहने के लिए देश के संविधान और लोकतंत्र की आत्मा को रौंद दिया था। उन्होंने कहा कि आपातकाल को देश के लोकतांत्रिक इतिहास का ‘काला अध्याय’ माना जाता है, जिसे कांग्रेस ने ही लागू किया था।
शाह ने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पर भी कटाक्ष करते हुए उन्हें "युवराज" कहा और पूछा कि क्या उन्हें अपनी दादी इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी की जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी भूल जाते हैं कि उनके पिता राजीव गांधी ने संसद में खड़े होकर कहा था कि इमरजेंसी में कुछ गलत नहीं हुआ था। शाह का यह बयान दर्शाता है कि वह सिर्फ वर्तमान परिस्थितियों की नहीं, बल्कि ऐतिहासिक सन्दर्भों की भी बात कर रहे हैं।
इसके साथ ही शाह ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने देश में वंशवाद, जातिवाद और तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा दिया है। उन्होंने कहा कि जब भी कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया गया, उसने लोकतंत्र को खतरे में बताना शुरू कर दिया। उनके अनुसार, लोकतंत्र को खतरे में बताने वाली पार्टी वही है जिसने एक समय आपातकाल लगाकर लाखों नागरिकों की स्वतंत्रता छीनी थी और मीडिया की आवाज तक को बंद करवा दिया था।
अमित शाह का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब देश में आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारियां जोरों पर हैं और राजनीतिक दल अपने-अपने एजेंडों को लेकर जनता के बीच सक्रिय हैं। ऐसे में विपक्ष द्वारा लगाए जा रहे आरोपों और सरकार के जवाब को जनता बड़े ध्यान से सुन रही है। शाह की यह प्रतिक्रिया भाजपा के चुनावी अभियान का हिस्सा मानी जा रही है, जिसमें वह कांग्रेस की पुरानी गलतियों को उजागर कर वर्तमान सरकार को अधिक लोकतांत्रिक, पारदर्शी और जवाबदेह बताने की कोशिश कर रहे हैं।
शाह का यह कहना कि “आपातकाल परिस्थितियों से नहीं, बल्कि नेताओं की मानसिकता से आता है,” आज की राजनीति में एक बड़ा संदेश देता है। यह न केवल कांग्रेस की नीतियों पर प्रश्नचिन्ह लगाता है बल्कि यह भी बताता है कि वर्तमान सरकार खुद को लोकतंत्र का रक्षक मानती है, जबकि विपक्ष उसे ‘तानाशाही सरकार’ करार देने में जुटा है।
इस पूरे विवाद से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि 2024-25 के चुनावी माहौल में ‘लोकतंत्र’, ‘आजादी’ और ‘आपातकाल’ जैसे शब्द केवल ऐतिहासिक संदर्भ नहीं रह गए हैं, बल्कि ये राजनीतिक हथियार बन गए हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता इस बहस में किसे सही मानती है — वह सरकार जिसे लोकतंत्र का रक्षक बताया जा रहा है, या विपक्ष जो सरकार पर लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन का आरोप लगा रहा है।