भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को लेकर एक बार फिर देशभर में बहस छिड़ गई है। जहां एक ओर केंद्र सरकार ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने का निर्णय लिया है, वहीं दूसरी ओर भारत के कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों द्वारा इस फैसले का विरोध भी देखने को मिल रहा है। खासकर पश्चिम बंगाल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के कार्यकर्ताओं द्वारा पाकिस्तान को सिंधु नदी का पानी दिए जाने की मांग को लेकर किए गए प्रदर्शन ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। आइए जानते हैं कि यह पूरा मामला क्या है और इसके पीछे की सच्चाई क्या है।
हाल ही में भारत सरकार ने सिंधु जल संधि को एकतरफा रूप से निलंबित कर दिया है। यह निर्णय ऐसे समय पर लिया गया जब भारत-पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक तनाव अपने चरम पर है। केंद्र सरकार के इस निर्णय को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बयान दिया था कि "आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते; पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।" इसका सीधा संकेत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की घटनाओं की ओर था, जिसके खिलाफ भारत ने अब पानी को भी हथियार की तरह इस्तेमाल करने का मन बना लिया है।
इस निर्णय के विरोध में CPI के कुछ कार्यकर्ता खासकर पश्चिम बंगाल में सड़कों पर उतर आए और प्रदर्शन करने लगे। इन कार्यकर्ताओं की मांग थी कि भारत को पाकिस्तान को सिंधु नदी का पानी देना जारी रखना चाहिए, क्योंकि यह संधि दोनों देशों के बीच एक ऐतिहासिक समझौता है। CPI के महासचिव ने केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए इसे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए नुकसानदायक बताया। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार के कदम क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ावा दे सकते हैं, जो कि शांति प्रक्रिया के लिए सही नहीं है।
हालांकि CPI की यह मांग देश के अन्य हिस्सों में खासा विवादास्पद साबित हुई है। कई राष्ट्रवादी संगठनों और राजनीतिक दलों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका मानना है कि जब पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देता है और सीज़फायर उल्लंघन करता है, तब उसे भारत से सिंधु जल जैसी अमूल्य प्राकृतिक संपदा क्यों दी जाए। प्रधानमंत्री मोदी की नीति को लेकर भी एक बड़ा वर्ग उनका समर्थन करता नजर आ रहा है, जो यह मानता है कि पाकिस्तान पर दबाव डालने के लिए सिंधु जल को रोका जाना एक प्रभावी कदम है।
दूसरी ओर, पाकिस्तान में भी सिंधु नदी और नहर परियोजनाओं को लेकर भारी असंतोष देखने को मिल रहा है। सिंध प्रांत में नागरिक, किसान और राजनीतिक दलों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किए हैं और इस परियोजना को सिंध के जल अधिकारों पर हमला बताया है। पाकिस्तान में इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक नाराजगी भी बढ़ रही है।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी इस मुद्दे पर नजर बनाए हुए है, क्योंकि सिंधु जल संधि को संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक जैसे संगठनों की निगरानी में ऐतिहासिक रूप से निष्पक्ष और टिकाऊ समझौता माना गया है। हालांकि, बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों और भारत में बढ़ते आतंकी हमलों के चलते यह तर्क दिया जा रहा है कि अब भारत को भी अपनी नीतियों को नए सिरे से गढ़ना होगा।
कुल मिलाकर, CPI कार्यकर्ताओं द्वारा पाकिस्तान को सिंधु जल देने की मांग और इसके विरोध में देश भर से उठती आवाज़ें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि आने वाले समय में यह मुद्दा और भी गरमाने वाला है। क्या भारत अपने जल संसाधनों को कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगा या पुनः शांति के मार्ग पर लौटेगा, यह आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा। फिलहाल इतना तय है कि सिंधु जल संधि को लेकर देश में विचारधाराओं का टकराव तेजी से बढ़ रहा है।