Influencer Sharmistha Panoli's controversy:-इंफ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली सोशल मीडिया से कोर्ट तक का सफर

सोशल मीडिया के दौर में अभिव्यक्ति की आज़ादी और उसकी सीमाएं एक बार फिर चर्चा में हैं। हाल ही में पुणे के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल की छात्रा और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली एक विवादित वीडियो के चलते गंभीर कानूनी संकट में फंस गई हैं। वीडियो में उन्होंने इस्लाम धर्म और पैगंबर मोहम्मद को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं, जिसके बाद देशभर में विवाद खड़ा हो गया।

इस वीडियो के वायरल होते ही सोशल मीडिया पर भारी प्रतिक्रिया देखने को मिली। धार्मिक भावनाएं आहत होने की बात कहते हुए कई लोगों ने इसका विरोध किया और पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। आलोचना बढ़ने पर शर्मिष्ठा पनोली ने वीडियो को डिलीट कर दिया और एक सार्वजनिक माफी जारी करते हुए कहा कि उनका मकसद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं था। लेकिन तब तक मामला काफ़ी आगे बढ़ चुका था।



कोलकाता पुलिस की टीम ने उन्हें हरियाणा के गुरुग्राम से गिरफ्तार किया और अलीपुर कोर्ट में पेश किया, जहां कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें 13 जून 2025 तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पुलिस ने उनके पास से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस भी ज़ब्त किए हैं, और अब इन डिवाइसेज़ की जांच की जा रही है ताकि यह पता चल सके कि कहीं और कोई आपत्तिजनक सामग्री तो मौजूद नहीं है।

मामले में कई धाराएं लगाई गई हैं, जिनमें धार्मिक भावनाएं भड़काने, शांति भंग करने और साम्प्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने से संबंधित धाराएं शामिल हैं। पुलिस ने बताया कि मामले की गहराई से जांच की जा रही है और सभी एफआईआर को आपस में क्लब करने की प्रक्रिया भी विचाराधीन है।

इस पूरे घटनाक्रम के बीच राजनीतिक रंग भी देखने को मिला। बीजेपी की पश्चिम बंगाल इकाई ने शर्मिष्ठा पनोली का समर्थन करते हुए कहा है कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है। वहीं, कई सामाजिक संगठनों ने उनकी टिप्पणियों की कड़ी निंदा की है और सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की है।

यह मामला न सिर्फ सोशल मीडिया के ज़िम्मेदार उपयोग की आवश्यकता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि विचारों की स्वतंत्रता के साथ उत्तरदायित्व भी जुड़ा होता है। हर व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने का अधिकार है, लेकिन वह अधिकार दूसरे की धार्मिक या सामाजिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का लाइसेंस नहीं बन सकता। आज सोशल मीडिया एक शक्तिशाली मंच बन चुका है, जहां कही गई बात कुछ ही पलों में लाखों लोगों तक पहुंच जाती है। ऐसे में किसी भी टिप्पणी से पहले सोच-समझकर बोलना ज़रूरी है।

शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी ने यह भी दिखा दिया कि सोशल मीडिया की दुनिया में कही गई बात अब सिर्फ वर्चुअल नहीं रह गई है, बल्कि उसके गंभीर कानूनी और सामाजिक परिणाम भी सामने आ सकते हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट इस मामले में क्या निर्णय देती है और क्या शर्मिष्ठा को उच्च न्यायालयों से राहत मिलती है या नहीं।

यह घटना एक बार फिर हमें याद दिलाती है कि सोशल मीडिया एक ताकतवर मंच है, लेकिन इसके इस्तेमाल में संयम और ज़िम्मेदारी भी उतनी ही ज़रूरी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा बड़ा है, लेकिन वह अनुशासन और सामाजिक सौहार्द के दायरे में रहकर ही सार्थक हो सकता है।