पाकिस्तान में बलात्कार के मामले किसी से छिपे नहीं हैं, लेकिन हाल ही में सामने आई एक चौंकाने वाली सच्चाई ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। पाकिस्तान की पूर्व सांसद और महिला अधिकारों की सशक्त आवाज़, शंदाना गुलज़ार खान ने एक टीवी इंटरव्यू में दावा किया कि पाकिस्तान में बलात्कार के 82% मामलों में आरोपी कोई बाहर का व्यक्ति नहीं, बल्कि पीड़िता का ही पिता, भाई, चाचा या दादा होता है। यानी घर की दीवारों के भीतर ही वह दरिंदगी पनप रही है, जिससे एक बच्ची सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करती है।
शंदाना गुलज़ार खान के इस बयान ने न सिर्फ पाकिस्तानी समाज की गहराई में छिपे अपराध को उजागर किया, बल्कि यह भी बताया कि इन मामलों में न तो कानून अपना काम कर पा रहा है और न ही समाज पीड़िता के साथ खड़ा हो रहा है। उन्होंने कहा कि ये लड़कियां पुलिस के पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं क्योंकि उनके घरवाले—यहां तक कि उनकी मां—भी शिकायत करने से डरती हैं। मां को डर होता है कि अगर उसने पति के खिलाफ आवाज़ उठाई तो पूरा परिवार बिखर जाएगा। इसी डर और शर्म के चलते इन बच्चियों को इंसाफ़ मिलना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
पाकिस्तान में ‘रेप कल्चर’ इस कदर फैल चुका है कि अब यह एक सामाजिक मानसिकता का हिस्सा बन चुका है। बलात्कार पीड़िता को ही दोषी ठहरा देना, उसकी चुप्पी को उसकी सहमति मान लेना और आरोपी को रिश्तों की ढाल देकर बचा लेना—यही आज का कड़वा सच है। मीडिया में ऐसे मामलों को दबा दिया जाता है, पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती और अदालतों तक बात पहुंचे, उससे पहले ही सामाजिक शर्मिंदगी पीड़िता को खामोश कर देती है।
पाकिस्तान में बलात्कार के मामलों में सज़ा की दर बेहद कम है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मात्र 3% मामलों में ही आरोपी को सजा मिल पाती है। जब कानून अपना काम नहीं कर पाता, तो समाज में अपराधियों का मनोबल बढ़ता है और पीड़िताएं इंसाफ की आस छोड़ देती हैं। इस पूरे सिस्टम में कहीं भी महिलाओं के लिए जगह नहीं दिखती—न सम्मान की, न सुरक्षा की और न ही न्याय की।
पाकिस्तान सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुछ कानून अवश्य बनाए हैं। 2006 में ‘वूमन प्रोटेक्शन बिल’ लाया गया और 2016 में ‘क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) (ऑफेंस ऑफ रेप) एक्ट’ के तहत DNA टेस्ट को अनिवार्य किया गया, जिससे बलात्कार के मामलों की जांच वैज्ञानिक ढंग से की जा सके। लेकिन इन कानूनों का ज़मीनी असर अभी तक देखने को नहीं मिला है। ना तो बलात्कार की घटनाओं में कोई कमी आई है और न ही पीड़िताओं को इंसाफ मिलने की प्रक्रिया आसान हुई है।
शंदाना गुलज़ार खान ने सवाल किया कि पाकिस्तान में कोई इस मुद्दे पर बात क्यों नहीं करना चाहता? उनके अनुसार, जब बलात्कारी पीड़िता का अपना ही हो, तो समाज उसे बचाने में जुट जाता है। लड़कियों को चुप रहने को कहा जाता है और यदि वे गर्भवती हो जाती हैं तो चुपचाप गर्भपात करा दिया जाता है। इस भयावह सच्चाई पर चर्चा करना इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि चुप्पी ही इस अपराध की सबसे बड़ी ताकत है।
पाकिस्तान जैसे समाज में जहां पितृसत्ता गहराई तक जड़ें जमाए हुए है, वहां लड़कियों को न केवल अपनी पहचान के लिए, बल्कि अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भी लड़ना पड़ता है। लेकिन यह लड़ाई वे अकेले नहीं लड़ सकतीं। जब तक पूरा समाज बलात्कारियों के खिलाफ नहीं खड़ा होगा, जब तक पुलिस, अदालतें और सरकार ईमानदारी से काम नहीं करेंगी, तब तक यह समस्या विकराल रूप लेती जाएगी।
इसलिए ज़रूरत है कि पाकिस्तान में बलात्कार के मामलों को गंभीरता से लिया जाए। शंदाना गुलज़ार खान जैसे नेताओं की बातों को अनसुना करने के बजाय, उन्हें नीति-निर्धारण में शामिल किया जाए। साथ ही मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और ऐसे मुद्दों पर खुलकर रिपोर्टिंग करनी चाहिए।
बलात्कार किसी एक लड़की की त्रासदी नहीं है, यह पूरे समाज का अपमान है। जब घर की दीवारें ही सुरक्षित नहीं रहें, तो फिर समाज किस आधार पर सभ्यता का दावा कर सकता है? अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान इस कलंक से लड़ने के लिए जागे, अपनी बेटियों को न्याय दे और उस चुप्पी को तोड़े जो अब तक दरिंदों की सबसे बड़ी ताकत रही है।