परिचय
एक समय था जब भारत को खाद्यान्न संकट के कारण विदेशी सहायता पर निर्भर रहना पड़ता था। 1960 के दशक में भारत खाद्यान्न की इतनी कमी से जूझ रहा था कि अमेरिका ने भारत को "भिखारियों का देश" तक कह दिया था। लेकिन आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। भारत आज न केवल खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर है, बल्कि विश्व का दूसरा सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक और निर्यातक भी बन चुका है। अब वही अमेरिका, जिसने कभी गेहूं देने से इनकार कर भारत को अपमानित किया था, आज भारत से गेहूं की मांग कर रहा है। यह बदलाव भारत की कृषि क्षेत्र में हुई क्रांति और आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी कहानी है।
भारत का खाद्यान्न संकट और PL-480 समझौता
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें सबसे बड़ी थी – खाद्यान्न संकट। 1950 और 60 के दशक में भारत की बढ़ती जनसंख्या और कम कृषि उत्पादकता के कारण देश को अमेरिका से गेहूं मंगवाना पड़ा। अमेरिका ने "PL-480" नामक कार्यक्रम के तहत भारत को अनाज भेजा, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक शर्तें थीं।
1965 में जब भारत ने कनाडा से भी अनाज खरीदने का प्रयास किया तो अमेरिका ने धमकी दी कि वह भारत को गेहूं भेजना बंद कर देगा। अमेरिकी सीनेटरों और मीडिया ने भारत को “begging bowl country” तक कह दिया, जिसका हिंदी में अर्थ है – "भिखारियों का देश"। भारत के लिए यह अपमानजनक स्थिति थी, लेकिन इससे भारत ने सबक सीखा।
हरित क्रांति की शुरुआत: भारत की कृषि क्रांति का सूत्रपात
अमेरिका के इस अपमान के बाद भारत ने कृषि आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाया। 1966-67 में हरित क्रांति की शुरुआत हुई। इस क्रांति की नींव रखी डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन और नोबेल पुरस्कार विजेता नॉर्मन बोरलॉग ने। हरित क्रांति के दौरान भारत में HYV (High Yielding Variety) बीजों, रासायनिक खादों, कीटनाशकों और सिंचाई सुविधाओं का उपयोग बढ़ा।
इससे गेहूं और चावल की पैदावार में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई और भारत ने 1970 के दशक के मध्य तक खुद को खाद्यान्न संकट से लगभग बाहर निकाल लिया। हरित क्रांति के चलते भारत अब गेहूं और चावल के मामले में आत्मनिर्भर बन गया।
खाद्यान्न उत्पादन में ऐतिहासिक वृद्धि
भारत ने हरित क्रांति के बाद न केवल अपने कृषि क्षेत्र को मजबूत किया बल्कि आज वह दुनिया के सबसे बड़े खाद्यान्न उत्पादकों में से एक है।
वर्ष | गेहूं उत्पादन (मिलियन टन) | चावल उत्पादन (मिलियन टन) |
---|---|---|
1965-66 | 10.4 | 39.3 |
1980-81 | 36.3 | 53.6 |
2000-01 | 69.7 | 85.0 |
2020-21 | 109.6 | 122.3 |
2023-24 | 112.2 | 135.5 |
इस तालिका से स्पष्ट होता है कि भारत ने कैसे अपने खाद्यान्न उत्पादन में लगातार वृद्धि की है और एक कृषि महाशक्ति के रूप में उभरा है।
भारत बना निर्यातक देश
2020 के बाद जब कोविड महामारी के कारण वैश्विक सप्लाई चेन प्रभावित हुई, तब भारत ने कई देशों को गेहूं और चावल भेजकर मदद की। भारत ने 2021-22 में लगभग 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया, जिसमें मुख्य रूप से अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मध्य एशिया के देश शामिल थे। यही नहीं, भारत आज विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक भी है।
अब अमेरिका को भारत की जरूरत
2024 में जलवायु परिवर्तन, यूक्रेन-रूस युद्ध, और वैश्विक अनाज संकट के कारण अमेरिका ने कई स्रोतों से गेहूं की खरीद शुरू की। भारत की गुणवत्ता, कीमत और स्टॉक को देखते हुए अमेरिका ने भारत से गेहूं के आयात में रुचि दिखाई। यह वही अमेरिका है जिसने 60 साल पहले भारत को अनाज देने से मना कर दिया था। आज उसे अपनी जरूरतों के लिए उसी भारत की ओर देखना पड़ रहा है।
कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की मिसाल
भारत की कृषि नीति, किसानों की मेहनत, वैज्ञानिकों के शोध और सरकार की योजनाओं ने मिलकर यह चमत्कार कर दिखाया है। अब भारत न केवल खुद के लिए बल्कि जरूरतमंद देशों के लिए भी खाद्यान्न उपलब्ध कराने में सक्षम है।
निष्कर्ष
भारत की यह यात्रा “भिखारियों के देश” से लेकर “खाद्यान्न निर्यातक महाशक्ति” बनने तक की एक प्रेरणादायक कहानी है। यह इस बात का प्रमाण है कि अपमान को अवसर में कैसे बदला जा सकता है। आज भारत की कृषि व्यवस्था पूरी दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुकी है। जो देश कभी भारत को ताने मारते थे, वे आज भारत से सहयोग की उम्मीद कर रहे हैं। यह बदलाव भारतीय किसानों की मेहनत, वैज्ञानिक सोच और देश की आत्मनिर्भरता की भावना का परिणाम है।
इस ऐतिहासिक परिवर्तन पर भारत को गर्व है, और यह पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा है कि कोई भी देश आत्मनिर्भर बन सकता है, अगर इरादा मजबूत हो।