उत्तराखंड की चारधाम यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह पहाड़ी पर्यटन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन बार-बार हो रहे हेलिकॉप्टर हादसे अब इस पवित्र यात्रा को खतरे में डाल रहे हैं। हाल ही में देहरादून से केदारनाथ जा रहा एक हेलिकॉप्टर त्रिजुगी नारायण और गौरीकुंड के बीच दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में पायलट समेत सात लोगों की मौत की खबर सामने आई है। यह घटना न केवल दुखद है, बल्कि यह एक बड़े प्रश्न को भी जन्म देती है—क्या हमारे देश में धार्मिक पर्यटन के दौरान लोगों की सुरक्षा को लेकर पर्याप्त इंतज़ाम किए गए हैं?
यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी चारधाम यात्रा मार्ग पर कई बार हेलिकॉप्टरों की इमरजेंसी लैंडिंग, तकनीकी खराबी और टकराव जैसी घटनाएं हो चुकी हैं। हर बार प्रशासन जांच और कार्रवाई की बात करता है, लेकिन कुछ समय बाद फिर से वही लापरवाही दिखाई देती है। ये मार्ग भूगोल और मौसम की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील माने जाते हैं। ऊंचे पहाड़, बदलता मौसम, घना कोहरा और सीमित लैंडिंग स्पॉट इन इलाकों में हेलिकॉप्टर उड़ानों को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।
चारधाम यात्रा के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और हेलिकॉप्टर सेवा एक सुविधाजनक विकल्प के रूप में काम करती है। लेकिन जब यही सेवा जानलेवा बन जाए, तो इस पर पुनः विचार करना आवश्यक हो जाता है। हेलिकॉप्टर ऑपरेटरों के लिए यह रूट मोटी कमाई का जरिया बन गया है। यात्री भी समय और सुविधा को प्राथमिकता देते हुए इन सेवाओं का सहारा लेते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब बार-बार हादसे हो रहे हैं तो सुरक्षा मानकों की समीक्षा क्यों नहीं हो रही?
दुर्घटनाओं की सबसे बड़ी वजहों में से एक है उड़ानों से पहले मौसम की सटीक जानकारी न मिल पाना। पायलट को कोहरे और दृश्यता की स्थिति का पूर्वानुमान न होने पर रिस्क बढ़ जाता है। इसके साथ ही हेलिकॉप्टरों की नियमित तकनीकी जांच और पायलटों की थकान जैसी स्थितियों को भी गंभीरता से नहीं लिया जाता। DGCA और UDADA जैसी संस्थाएं समय-समय पर निर्देश जारी करती हैं, लेकिन उन पर अमल की स्थिति स्पष्ट नहीं होती।
हाल की घटना के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हेलिकॉप्टर सेवाओं को अस्थायी रूप से स्थगित करने का आदेश दिया है और उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। हालांकि यह कदम सराहनीय है, लेकिन अस्थायी समाधान स्थायी समस्या का हल नहीं हो सकता। हमें एक ऐसी नीति की आवश्यकता है जो इन रूट्स पर हेलिकॉप्टर सेवाओं को दीर्घकालिक सुरक्षा दृष्टिकोण से संचालित कर सके।
चारधाम यात्रा की पवित्रता तभी बनी रह सकती है जब यात्रियों का जीवन सुरक्षित हो। यात्रियों को भी अपनी जान जोखिम में डालकर तेज़ यात्रा करने की बजाय सुरक्षित और स्थायी विकल्पों को अपनाने पर विचार करना चाहिए। सरकार, प्रशासन और ऑपरेटर—तीनों की जिम्मेदारी बनती है कि यात्रियों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
केदारनाथ जैसी श्रद्धा की यात्रा को शोक का विषय न बनने दिया जाए। यह केवल एक तकनीकी चूक नहीं, बल्कि मानव जीवन की अनदेखी है। और जब तक सुरक्षा व्यवस्था में ज़मीनी बदलाव नहीं लाए जाएंगे, तब तक यह यात्रा बार-बार शोक संदेश बनकर लौटेगी।