आज देश की एक बड़ी समस्या बन चुकी है — पढ़े-लिखे युवाओं की बेरोजगारी। पवन धनगर इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। पवन न सिर्फ 10वीं और 12वीं में टॉपर रहे हैं, बल्कि उन्होंने इंजीनियरिंग में B.Tech भी पूरी की है। इसके बावजूद उन्हें अभी तक कोई नौकरी नहीं मिल पाई है। यह सिर्फ पवन की ही कहानी नहीं है, बल्कि लाखों युवाओं की आवाज है, जो पढ़ाई में अव्वल होने के बाद भी रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं। यह मुद्दा आज हर घर, हर परिवार में चिंता का विषय बन चुका है।
पवन धनगर का मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने योग्यता और मेहनत दोनों में कोई कमी नहीं छोड़ी। एक सामान्य परिवार से आने वाले पवन ने अपनी पढ़ाई पूरी ईमानदारी से की, हर परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन किया, और सिस्टम पर भरोसा रखते हुए आगे बढ़ते रहे। लेकिन जैसे ही वह डिग्री लेकर नौकरी की तलाश में निकले, तो उन्हें एहसास हुआ कि सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में अवसर बेहद सीमित हैं। उच्च शिक्षा के बावजूद जब नौकरियां नहीं मिलतीं, तो युवा हताश हो जाते हैं और समाज में निराशा का माहौल बनता है।
भारत में युवाओं की आबादी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन नौकरी के अवसर उस रफ्तार से नहीं बढ़ रहे। सरकारी नौकरियों में भर्तियाँ या तो बहुत धीमी हैं, या भ्रष्टाचार व आरक्षण की उलझनों में फंसी हुई हैं। पवन जैसे छात्रों को यही लगता है कि योग्यता के बावजूद उन्हें उनका हक नहीं मिल पा रहा है। वहीं निजी क्षेत्र में भी अनुभव और स्किल की मांग इतनी अधिक है कि एक नया स्नातक वहां भी जगह नहीं बना पाता।
इस बीच आरक्षण को लेकर भी पवन जैसे छात्रों की नाराजगी सामने आ रही है। उनका मानना है कि सरकार योग्यता को नज़रअंदाज़ कर सिर्फ आरक्षित वर्गों को प्राथमिकता दे रही है, जिससे सामान्य वर्ग के होनहार छात्र हाशिये पर आ गए हैं। हालांकि आरक्षण की अपनी सामाजिक-आर्थिक जरूरतें हैं, लेकिन मौजूदा समय में सरकार को यह भी देखना होगा कि योग्यता का भी सम्मान हो और सभी वर्गों को समान अवसर मिलें।
दूसरी तरफ, सरकारी योजनाएं और रोजगार मेले सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह गए हैं। युवाओं को स्किल डेवलपमेंट के नाम पर आधी-अधूरी ट्रेनिंग दी जाती है और जब वो रोजगार की तलाश में निकलते हैं, तो उन्हें कोई दिशा नहीं मिलती। पवन जैसे छात्रों का यही कहना है कि सरकार सिर्फ घोषणाएं कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर नौकरियों की संख्या घटती जा रही है।
देश को आज एक व्यवस्थित और पारदर्शी रोजगार नीति की जरूरत है। हर राज्य में युवाओं को उनकी शिक्षा, कौशल और क्षमता के अनुसार नौकरी मिलनी चाहिए। भर्तियों में देरी, परीक्षा घोटाले और इंटरव्यू में धांधली जैसी समस्याएं बंद होनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वो युवा शक्ति की इस ऊर्जा को बेरोजगारी की आग में जलने न दे, बल्कि उसे राष्ट्र निर्माण में लगाएं।
पवन धनगर की कहानी सिर्फ एक युवा की निराशा नहीं है, बल्कि एक पूरे पीढ़ी की तकलीफ है। सरकार अगर आज नहीं चेती, तो यह नाराजगी आने वाले समय में बड़ा जन आंदोलन बन सकती है। आज वक्त है कि सरकार और समाज मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं, ताकि कोई भी पढ़ा-लिखा युवा खुद को असहाय महसूस न करे।
क्या आप भी पवन धनगर जैसे किसी युवा को जानते हैं? क्या आपके पास भी कोई सुझाव है जिससे बेरोजगारी की समस्या हल हो सके? अपनी राय नीचे ज़रूर साझा करें और इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।