देश में साइबर क्राइम के मामले दिन-ब-दिन खतरनाक और चौंकाने वाले होते जा रहे हैं। ऐसा ही एक सनसनीखेज मामला आगरा से सामने आया है, जहां एक युवती को 'डिजिटल अरेस्ट' में रखकर न केवल मानसिक प्रताड़ना दी गई, बल्कि उससे 16 लाख रुपये की भारी-भरकम ठगी भी कर ली गई। यह घटना न सिर्फ टेक्नोलॉजी के गलत इस्तेमाल को उजागर करती है, बल्कि लोगों की भोली-भाली मानसिकता और भय का फायदा उठाकर किए जाने वाले अपराधों की गंभीरता भी दर्शाती है।
घटना की शुरुआत तब हुई जब आगरा की एक युवती के पास एक अज्ञात कॉल आया। फोन करने वाले ने खुद को सीबीआई और नारकोटिक्स विभाग का अधिकारी बताया। उसे डराया गया कि उसका नाम एक बड़े ड्रग्स और मनी लॉन्ड्रिंग केस में आ चुका है और उस पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है। युवती पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया गया और कहा गया कि उसे तुरंत "डिजिटल अरेस्ट" में लिया जा रहा है।
डिजिटल अरेस्ट का मतलब बताया गया कि अब वह 24 घंटे कैमरे की निगरानी में रहेगी और किसी से बात नहीं कर सकेगी। उसे वीडियो कॉल पर रखा गया और निर्देश दिए गए कि वह कैमरे के सामने रहे। इसी दौरान साइबर ठगों ने सबसे घिनौना चेहरा दिखाया—उन्होंने युवती से कपड़े उतारने के लिए कहा और ऐसा न करने पर उसे जेल भेजने की धमकी दी। युवती डर गई और उनकी बात मान ली। उसकी यह वीडियो रिकॉर्ड कर ली गई और फिर उसे ब्लैकमेल कर 30 दिनों तक उसके साथ मानसिक अत्याचार किया गया।
इस दौरान, ठगों ने उसे अलग-अलग बैंक खातों में कुल 16 लाख रुपये ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया। पीड़िता को धमकी दी गई कि अगर उसने किसी को कुछ बताया, तो उसका अश्लील वीडियो वायरल कर दिया जाएगा। डर के कारण युवती चुप रही और परिवार को भी कुछ नहीं बताया। ठगों ने उसे एक फर्जी सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी भेजा, जिसमें लिखा था कि वह जमानत नहीं ले सकती और तुरंत पैसे देने होंगे।
इस मामले की गंभीरता को समझते हुए आगरा पुलिस ने साइबर सेल की मदद से जांच शुरू की। जांच में सामने आया कि इस पूरे अपराध में एक निजी बैंक का प्रबंधक और उसके एक साथी की संलिप्तता थी, जिन्हें राजस्थान के कोटा से गिरफ्तार किया गया। पुलिस अब इस नेटवर्क से जुड़े बाकी आरोपियों की तलाश कर रही है।
यह घटना एक बड़ा अलार्म है कि डिजिटल तकनीक के इस दौर में लोग कितनी आसानी से झांसे में आ जाते हैं। "डिजिटल अरेस्ट" जैसा शब्द सुनते ही लोगों को डर लगने लगता है, और अपराधी इसी मानसिकता का फायदा उठाते हैं। आम जनता को यह समझना जरूरी है कि कोई भी सरकारी एजेंसी कभी किसी को वीडियो कॉल पर गिरफ्तार नहीं करती और न ही कपड़े उतरवाने जैसे अमानवीय कृत्य का आदेश देती है।
अगर किसी को ऐसा कोई कॉल आए, तो सबसे पहले पुलिस को सूचित करें, संबंधित नंबर की रिपोर्ट करें और किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत जानकारी या ट्रांजैक्शन की पुष्टि न करें। साथ ही, यह भी समझना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट या कोई भी संस्था आपको ईमेल या व्हाट्सऐप पर आदेश नहीं भेजती।
आगरा की यह घटना एक बार फिर दिखाती है कि साइबर अपराधी अब मानसिक खेल खेलने लगे हैं। वे केवल तकनीक का दुरुपयोग नहीं कर रहे, बल्कि सामाजिक विश्वास और डर का फायदा उठाकर लोगों को मानसिक और आर्थिक रूप से बर्बाद कर रहे हैं। इसलिए सतर्क रहना, जागरूक रहना और समय पर शिकायत करना ही साइबर अपराध से बचाव का सबसे बड़ा उपाय है।