भारत में मानसून हर साल एक परीक्षा की तरह आता है। यह न केवल किसानों के लिए वरदान होता है, बल्कि देश की नगरीय व्यवस्थाओं की असलियत भी उजागर करता है। इस साल की पहली बारिश ने भारत की दो प्रमुख महानगरों—मुंबई और बेंगलुरु—की प्रशासनिक तैयारियों और बुनियादी ढांचे की पोल खोल दी है। हाईटेक सिटी कहलाने वाले ये शहर बारिश के कुछ घंटों में ही पानी-पानी हो गए, और आम जनता की जिंदगी अस्त-व्यस्त हो गई।
मुंबई, जिसे भारत की आर्थिक राजधानी कहा जाता है, में 26 मई को हुई पहली बारिश के बाद हाल ही में उद्घाटन किए गए ‘आचार्य अत्रे चौक मेट्रो स्टेशन’ में पानी भर गया। यह स्टेशन मुंबई मेट्रो लाइन-3 यानी एक्वा लाइन का हिस्सा है, जिसका उद्घाटन अभी दो हफ्ते पहले ही किया गया था। लेकिन सिर्फ कुछ घंटों की तेज बारिश ने इसके निर्माण की गुणवत्ता और जल निकासी व्यवस्था की पूरी पोल खोल दी। स्टेशन के अंदर तक पानी भर गया और मेट्रो सेवाएं बाधित हो गईं। इसके कारण हजारों यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा। इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मुंबई जैसे शहर को वाकई स्मार्ट सिटी कहा जा सकता है, जब वहां की मूलभूत व्यवस्थाएं इतनी कमजोर हैं?
दूसरी ओर, बेंगलुरु में भी कुछ दिन पहले की बारिश ने पूरे शहर को झील में तब्दील कर दिया। आईटी हब कहे जाने वाले इस शहर की सड़कों पर पानी भर गया, यातायात पूरी तरह जाम हो गया और कई कार्यालयों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की सलाह दी। जलभराव के कारण शहर की रफ्तार थम गई और लोगों को घंटों तक पानी में फंसे रहना पड़ा। बेंगलुरु की यह स्थिति न केवल प्रशासन की विफलता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि देश के आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर का गढ़ अब अपनी ही अव्यवस्था में डूब रहा है।
प्रश्न यह उठता है कि हर साल मानसून आता है, फिर भी हमारे महानगर इतने असहाय क्यों हो जाते हैं? क्या हम केवल सड़कें और इमारतें बनाकर स्मार्ट सिटी की परिभाषा पूरी कर सकते हैं? असल स्मार्ट सिटी वही होती है, जहां प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सक्षम व्यवस्था हो, जल निकासी व्यवस्था मजबूत हो और नागरिकों को सुरक्षा व सुविधा मिल सके। मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में हर साल जलभराव की खबरें आम होती जा रही हैं, और इनसे यह साफ हो गया है कि हमने केवल ऊपरी चमक-दमक पर ध्यान दिया है, न कि नींव को मजबूत करने पर।
सरकार और प्रशासन को अब गंभीरता से सोचना होगा कि सिर्फ उद्घाटन और घोषणाओं से शहर नहीं चलते। जब तक ठोस जल निकासी योजनाएं, सड़क निर्माण की गुणवत्ता और शहरी विकास की नीति में परिवर्तन नहीं होगा, तब तक हर मानसून हमें यही दृश्य दिखाता रहेगा—जहां स्मार्ट सिटी पानी में डूबी होगी और जनता परेशान।