मध्य पूर्व में जारी गाज़ा संकट एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। अमेरिका ने हाल ही में इज़राइल और हमास के बीच 60 दिनों के युद्धविराम का प्रस्ताव रखा, जिसे इज़राइल ने तो स्वीकार कर लिया, लेकिन हमास ने गंभीर शर्तों और आपत्तियों के साथ अस्वीकार कर दिया है। इस प्रस्ताव के अंतर्गत गाज़ा में मानवीय राहत बढ़ाने, बंधकों की रिहाई और कैदियों के आदान-प्रदान की योजना थी, लेकिन हमास का मानना है कि यह प्रस्ताव “हत्या की निरंतरता” को बढ़ावा देता है और उनकी मूलभूत मांगों को अनदेखा करता है।
अमेरिका द्वारा दिए गए इस युद्धविराम प्रस्ताव के अनुसार, हमास को लगभग 10 जीवित बंधकों के साथ कुछ मृतकों के शवों को रिहा करना होगा, जबकि इज़राइल 1,100 से अधिक फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करने पर सहमत होगा। साथ ही, गाज़ा में बड़े पैमाने पर मानवीय सहायता भेजने की व्यवस्था की जाएगी। इस प्रस्ताव का उद्देश्य दोनों पक्षों को अस्थायी राहत प्रदान करना था, ताकि लंबी अवधि के संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।
हालांकि, हमास ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा है कि इसमें युद्ध को समाप्त करने की कोई गारंटी नहीं दी गई है और यह गाज़ा के नागरिकों पर हो रहे नरसंहार को रोकने में विफल है। हमास ने अमेरिका से "गंभीर और ठोस" गारंटी की मांग की है, ताकि युद्ध का स्थायी समाधान निकल सके। उनका यह भी कहना है कि जब तक इस प्रस्ताव में संघर्ष के समापन की स्पष्ट शर्तें शामिल नहीं होतीं, तब तक इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
दूसरी ओर, इज़राइल के रक्षा मंत्री ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि हमास इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता है, तो उसे “पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया जाएगा।” यह बयान संकट को और अधिक गहराने वाला प्रतीत होता है। इज़राइल की ओर से इस प्रस्ताव को स्वीकार करना और हमास द्वारा उसका ठुकराया जाना अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई बहस को जन्म दे चुका है।
संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं गाज़ा की स्थिति को “मानवीय आपदा” घोषित कर चुकी हैं। रिपोर्टों के अनुसार, गाज़ा की पूरी आबादी भूख और कुपोषण के खतरे में है। हजारों लोग बेघर हो चुके हैं और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है। ऐसे में अमेरिका द्वारा प्रस्तावित यह युद्धविराम मानवीय राहत की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा था।
हालांकि, हमास का रुख यह दर्शाता है कि केवल अस्थायी युद्धविराम ही समाधान नहीं है। उनकी प्रमुख मांग युद्ध का स्थायी अंत और फिलिस्तीनी क्षेत्र में आत्मनिर्णय के अधिकार को लेकर है। अमेरिका की ओर से यदि कोई गारंटी या दीर्घकालिक योजना नहीं दी जाती, तो हमास जैसे संगठन इस प्रकार के प्रस्तावों को गंभीरता से नहीं लेंगे।
यह स्पष्ट है कि गाज़ा संकट का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई या अस्थायी शांति समझौतों से नहीं हो सकता। जब तक सभी पक्ष एक स्थायी, न्यायसंगत और पारदर्शी राजनीतिक समाधान की दिशा में नहीं बढ़ते, तब तक इस क्षेत्र में स्थायी शांति की आशा क्षीण ही बनी रहेगी।
निष्कर्षतः, अमेरिका द्वारा दिया गया 60-दिन का युद्धविराम प्रस्ताव एक अच्छी शुरुआत हो सकती थी, लेकिन हमास की असहमति और गारंटी की मांग ने इस प्रस्ताव को अधर में डाल दिया है। यह दर्शाता है कि शांति स्थापित करने के लिए केवल कूटनीतिक प्रयास नहीं, बल्कि सभी पक्षों की राजनीतिक इच्छाशक्ति और पारदर्शिता भी जरूरी है।
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