दक्षिण एशिया के सुरक्षा परिदृश्य में पाकिस्तान एक ऐसा देश बन गया है, जहां से कई कट्टरपंथी आतंकी संगठनों की उत्पत्ति और विस्तार हुआ है। भारत, अफगानिस्तान और पश्चिमी देशों के लिए यह एक गंभीर चिंता का विषय रहा है। यद्यपि पाकिस्तान सरकार बार-बार यह दावा करती रही है कि वह आतंकवाद का विरोधी है और इसने हजारों नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों को खोया है, लेकिन इसके विपरीत साक्ष्य और घटनाएं इस कथन को संदेहास्पद बना देते हैं।
इस लेख में हम पाकिस्तान में सक्रिय प्रमुख आतंकी संगठनों की विस्तार से चर्चा करेंगे, उनके उद्देश्य, गतिविधियों और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को समझेंगे, साथ ही यह भी देखेंगे कि वैश्विक संस्थाएं जैसे FATF और भारत इस पर क्या रुख अपनाए हुए हैं।
1. Tehrik-e-Taliban Pakistan (TTP)
TTP एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, जिसकी स्थापना 2007 में पाकिस्तान के आदिवासी इलाकों में हुई थी। इसका उद्देश्य पाकिस्तान सरकार को गिराकर शरिया कानून लागू करना है। पाकिस्तान सरकार इसे एक आतंकी संगठन मानती है और इसके खिलाफ कई सैन्य अभियान चला चुकी है।
2. Lashkar-e-Taiba (LeT)
LeT की स्थापना 1990 में हुई थी और इसे भारत के कश्मीर क्षेत्र में हिंसा फैलाने के लिए जाना जाता है। 2008 के मुंबई हमलों में इसकी संलिप्तता साबित हो चुकी है। इसका मुख्यालय पाकिस्तान के मुरिदके में है। भारत, अमेरिका और UN इसे एक वैश्विक आतंकी संगठन मानते हैं।
3. Jaish-e-Mohammed (JeM)
JeM की स्थापना मसूद अजहर ने 2000 में पाकिस्तान में की थी। यह संगठन भी कश्मीर मुद्दे पर भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त है। 2019 के पुलवामा हमले के पीछे इसी संगठन का हाथ था।
4. Al-Qaeda
हालांकि अल-कायदा की स्थापना अफगानिस्तान में हुई थी, लेकिन ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान में पाया जाना और अमेरिका द्वारा एबटाबाद में उसे मारा जाना पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल खड़े करता है।
5. ISIS-KP (Islamic State – Khorasan Province)
इस्लामिक स्टेट का यह संस्करण पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सक्रिय है। कई आत्मघाती हमलों और हत्या कांडों में इसकी भूमिका रही है। यह संगठन पाकिस्तान के लिए भी एक खतरा बना हुआ है।
पाकिस्तान के प्रमुख आतंकी संगठन
पाकिस्तान में जन्मे या वहां से संचालित होने वाले प्रमुख आतंकवादी संगठनों में से कुछ ऐसे हैं जो केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की शांति के लिए खतरा बन चुके हैं। इनमें से कुछ संगठन सीधे कश्मीर में हिंसा फैलाने में संलिप्त रहे हैं, तो कुछ वैश्विक आतंकी नेटवर्क से जुड़े हुए हैं। नीचे दी गई तालिका में प्रमुख आतंकी संगठनों का विवरण दिया गया है:
संगठन का नाम | स्थापना वर्ष | उद्देश्य | पाकिस्तान से संबंध / स्थिति |
---|---|---|---|
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) | 2007 | पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करना | पाकिस्तान में ही स्थित, सरकार के खिलाफ हिंसात्मक अभियान संचालित करता है। |
लश्कर-ए-तैयबा (LeT) | 1990 | कश्मीर को भारत से अलग करना | पाकिस्तान से समर्थन प्राप्त, 26/11 मुंबई हमलों में संलिप्त। |
जैश-ए-मोहम्मद (JeM) | 2000 | कश्मीर में आतंकी गतिविधियां | पाकिस्तान स्थित, पुलवामा हमले में भूमिका। |
अल कायदा | 1988 | वैश्विक जिहाद और पश्चिमी देशों पर हमला | ओसामा बिन लादेन की पाकिस्तान में मौजूदगी ने भूमिका पर प्रश्न उठाए। |
ISIS-KP (इस्लामिक स्टेट – खुरासान प्रांत) | 2015 | इस्लामी खिलाफत की स्थापना | पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर सक्रिय, अत्यंत हिंसक। |
हिजबुल मुजाहिदीन | 1989 | कश्मीर में भारत विरोधी अभियान | पाकिस्तानी समर्थन के आरोप, आतंकी घोषित। |
जमात-उद-दावा | 1985 | LeT का फ्रंट संगठन | पाकिस्तान में बार-बार प्रतिबंधित, पर नाम बदलकर सक्रिय। |
सिपाह-ए-सहाबा | 1985 | शिया विरोधी, सुन्नी कट्टरता का प्रसार | पाकिस्तान में प्रतिबंधित, छद्म रूप से अब भी सक्रिय। |
लश्कर-ए-झांगवी | 1996 | शिया विरोधी आतंकवाद | प्रतिबंधित, अफगानिस्तान में सक्रिय नेटवर्क। |
हरकत-उल-मुजाहिदीन | 1985 | भारत और अफगानिस्तान में जिहाद | पाकिस्तान से संचालन, आतंकवाद फैलाने में संलिप्त। |
यूनाइटेड जिहाद काउंसिल | 1994 | कश्मीर के आतंकी संगठनों का संयुक्त मोर्चा | पाकिस्तान से संबंध के साक्ष्य। |
अंसार-उल-इस्लाम | 2004 | पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में हिंसक इस्लामी आंदोलन | कट्टर विचारधारा, TTP से वैचारिक साम्यता। |
अल-बद्र | 1971 | भारत के विरुद्ध कश्मीर में आतंकी गतिविधियां | भारत में प्रतिबंधित, पाकिस्तान से समर्थन। |
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की भूमिका
FATF (Financial Action Task Force) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण पर निगरानी रखती है। पाकिस्तान को जून 2018 में FATF की "ग्रे लिस्ट" में डाला गया था, क्योंकि वह आतंकी संगठनों के वित्तपोषण को रोकने में विफल रहा था। इसके बाद, पाकिस्तान ने कुछ कदम उठाए और अक्टूबर 2022 में उसे ग्रे लिस्ट से हटा दिया गया।
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान के प्रयास केवल सतही रहे हैं। कई आतंकी संगठन नाम बदलकर या समाजसेवी संगठनों की आड़ में अपना संचालन जारी रखते हैं।
भारत का रुख और प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने हमेशा पाकिस्तान से यह मांग की है कि वह अपनी ज़मीन से आतंकवाद को समर्थन देना बंद करे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में स्पष्ट रूप से पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर वह आतंकियों को समर्थन देना बंद नहीं करता, तो उसे परिणाम भुगतने होंगे।
26/11 मुंबई हमले, पुलवामा हमला, और उरी जैसी घटनाओं के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करने की कई कोशिशें की हैं, जिनमें कुछ सफलताएं भी मिली हैं।
पाकिस्तान का दावा और वास्तविकता
पाकिस्तान यह दावा करता है कि वह आतंकवाद का सबसे बड़ा पीड़ित है और 70,000 से अधिक नागरिकों और सैनिकों को इसने खोया है। पाकिस्तान सरकार का यह भी कहना है कि उसने कई संगठनों पर प्रतिबंध लगाया है और FATF की मांगों के अनुसार कड़े कदम उठाए हैं।
हालांकि, इन दावों के बावजूद, जमीन पर वास्तविकता अलग दिखती है। उदाहरण के लिए, जमात-उद-दावा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन आज भी पाकिस्तान में सामाजिक कार्यों की आड़ में मौजूद हैं। इनके नेताओं को पाकिस्तान में सार्वजनिक रूप से देखा गया है, जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन है।
क्या पाकिस्तान आतंक के खिलाफ ईमानदार है?
यह एक बहस का विषय है। एक ओर पाकिस्तान आतंकी हमलों में अपनी नागरिक हानि की बात करता है, दूसरी ओर वह इन संगठनों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई से कतराता है। यदि पाकिस्तान वास्तव में आतंक के खिलाफ सख्त रुख अपनाता, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेष रूप से भारत के साथ उसके संबंध बेहतर हो सकते थे।
निष्कर्ष
पाकिस्तान के कई आतंकी संगठनों की उत्पत्ति और विस्तार ने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा पैदा किया है। चाहे वह लश्कर-ए-तैयबा हो या जैश-ए-मोहम्मद, इन संगठनों की गतिविधियों से हजारों निर्दोष लोगों की जान गई है। पाकिस्तान को यदि वास्तव में वैश्विक मंच पर सम्मान प्राप्त करना है और अपने देश को आतंकवाद से मुक्त करना है, तो उसे बिना किसी भेदभाव के इन संगठनों पर कठोर कार्रवाई करनी होगी।
जब तक पाकिस्तान आतंक के खिलाफ निर्णायक और पारदर्शी रवैया नहीं अपनाता, तब तक दक्षिण एशिया में स्थायी शांति संभव नहीं है।
नोट: यह लेख तथ्य आधारित है और सभी जानकारी विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से प्राप्त की गई है। आप चाहें तो इस ब्लॉग को अपने सोशल मीडिया पर साझा करें ताकि अधिक लोग जागरूक हो सकें।
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