बांग्लादेश में एक बार फिर से राजनीतिक संकट गहराता नजर आ रहा है। राजधानी ढाका में सेना की गतिविधियों में बढ़ोतरी और अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस के इस्तीफे की संभावना ने देश की स्थिति को अस्थिर बना दिया है। जहां एक ओर सेना और सरकार के बीच टकराव की खबरें हैं, वहीं दूसरी ओर आम नागरिकों के बीच डर और असमंजस का माहौल पनपने लगा है। बांग्लादेश एक बार फिर उस मोड़ पर खड़ा है जहां लोकतंत्र और सैन्य तानाशाही के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है।
बात नवंबर 2024 की है जब प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पद से इस्तीफा दे दिया था और नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता मुहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी सौंपी गई। देश में राजनीतिक सुधारों की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन यूनुस के नेतृत्व में सरकार अपेक्षित गति से काम नहीं कर पाई। इसका परिणाम यह हुआ कि बांग्लादेश की जनता के बीच असंतोष बढ़ने लगा।
सबसे बड़ा संकट तब सामने आया जब सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज़-ज़मान और यूनुस के बीच चुनाव को लेकर मतभेद उजागर हुए। सेना चाहती थी कि दिसंबर 2025 तक चुनाव कराए जाएं ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया फिर से बहाल हो सके, जबकि यूनुस ने इसे 2026 तक स्थगित करने का सुझाव दिया। इस टकराव ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी और इसी बीच सेना की ढाका में बढ़ती उपस्थिति ने तख्तापलट की अटकलों को हवा दी।
हालांकि सेना प्रमुख ने इन खबरों को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि सेना लोकतांत्रिक प्रक्रिया की समर्थक है और तख्तापलट जैसी किसी योजना में शामिल नहीं है। उन्होंने देश की स्थिरता और शांति बनाए रखने की अपील की, लेकिन इसके बावजूद आम लोगों के मन में भय बना हुआ है। दूसरी ओर यूनुस ने अपने हालिया बयान में यह साफ कर दिया है कि यदि राजनीतिक दलों का सहयोग नहीं मिला तो वह जल्द इस्तीफा देने पर विचार कर सकते हैं।
इस पूरे राजनीतिक उथल-पुथल के बीच एक और बड़ा घटनाक्रम सामने आया — ‘ऑपरेशन डेविल हंट’। यह सेना द्वारा चलाया जा रहा एक विशेष अभियान है, जिसका उद्देश्य पूर्ववर्ती सरकार के समर्थकों, कट्टरपंथियों और संदिग्ध लोगों के खिलाफ कार्रवाई करना है। इस अभियान के तहत अब तक हजारों लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है और कई नेताओं व पत्रकारों पर भी शिकंजा कसा गया है।
बांग्लादेश की जनता के सामने अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या लोकतंत्र की बहाली होगी या एक बार फिर देश को सैन्य शासन की ओर मोड़ दिया जाएगा? अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी बांग्लादेश की स्थिति पर नजर बनाए हुए है। भारत, अमेरिका और अन्य पड़ोसी देश चाहते हैं कि बांग्लादेश में स्थायित्व बना रहे ताकि दक्षिण एशिया में शांति कायम रह सके।
इस समय बांग्लादेश जिस राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है, वहां से कोई भी फैसला देश के भविष्य को तय करेगा। मुहम्मद यूनुस की अगुवाई में जो उम्मीदें बंधी थीं, वह अब धुंधली पड़ती नजर आ रही हैं। अगर सेना ने सत्ता अपने हाथ में ली, तो यह दक्षिण एशिया की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। आने वाले कुछ हफ्ते बांग्लादेश के इतिहास में निर्णायक हो सकते हैं।