हाल ही में बिहार के चर्चित नेता और पूर्व सांसद पप्पू यादव एक बार फिर अपने विवादित बयान के चलते सुर्खियों में आ गए हैं। पप्पू यादव ने कथित तौर पर हिंदू संतों को लेकर ऐसा बयान दिया है जिससे देशभर में नाराजगी की लहर दौड़ गई है। उनका यह बयान जहां धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला बताया जा रहा है, वहीं इसे लेकर कई हिंदू संगठनों और नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
पप्पू यादव का कथित बयान था कि "हिंदू संत अब कुकुरमुत्ते की तरह हो गए हैं। असली संत तो हजरत और मोहम्मद साहब होते हैं।" इस बयान के वायरल होते ही सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना शुरू हो गई। ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर यूजर्स ने पप्पू यादव की टिप्पणी को हिंदू धर्म के खिलाफ बताया और उन पर धार्मिक सद्भाव बिगाड़ने का आरोप लगाया।
पप्पू यादव का राजनीतिक करियर हमेशा से विवादों से भरा रहा है। उन्होंने 1990 में निर्दलीय विधायक के रूप में राजनीति की शुरुआत की थी और बाद में पांच बार लोकसभा सांसद चुने गए। वे अपने बयानों और अंदाज के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस बार उनका बयान सीधे तौर पर धार्मिक भावनाओं पर चोट करता नजर आ रहा है।
इससे पहले भी पप्पू यादव कई बार ऐसी टिप्पणियों के कारण विवादों में घिर चुके हैं। वर्ष 1998 में माकपा नेता अजीत सरकार की हत्या के मामले में भी वे जेल जा चुके हैं और इस केस में उन्होंने करीब 17 साल की सजा काटी थी। हालांकि, बाद में उन्हें कोर्ट से बरी कर दिया गया था। इसके बावजूद उनका विवादित चेहरा जनता के बीच छिपा नहीं है।
हाल ही में उन्होंने भारतीय सेना के शहीद जवान मोहम्मद इम्तियाज को श्रद्धांजलि दी थी और उनके परिवार को आर्थिक सहायता भी दी। इस अवसर पर उन्होंने कहा था कि "शहीद कभी मरते नहीं, वे हमारे दिलों में जीवित रहते हैं।" इस बयान की सराहना तो हुई, लेकिन अब उनके हिंदू संतों पर दिए बयान ने उनके सकारात्मक कार्यों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पप्पू यादव का यह बयान आगामी लोकसभा चुनावों से ठीक पहले आया है, जिससे उनके इरादों पर भी संदेह जताया जा रहा है। क्या वे किसी खास वर्ग को साधने की कोशिश कर रहे हैं या फिर यह सिर्फ एक चूक थी — इस पर बहस जारी है। हालांकि, बयान के वायरल होने के बाद उन्होंने सफाई नहीं दी है, जिससे मामला और भी गंभीर होता नजर आ रहा है।
कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने इस मामले में सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि लोकतंत्र में हर व्यक्ति को बोलने की आज़ादी है, लेकिन धर्म और आस्था का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
वर्तमान में पप्पू यादव कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं और उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी 'जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक)' का कांग्रेस में विलय कर दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस बयान पर क्या रुख अपनाती है, क्योंकि इससे उनके लिए भी राजनीतिक असहजता बढ़ सकती है।
इस तरह के बयान देश में सामाजिक एकता और भाईचारे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। भारत जैसे बहुधार्मिक देश में नेताओं को अपने शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए। पप्पू यादव के इस बयान ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि सस्ती लोकप्रियता और सुर्खियों में बने रहने के लिए कुछ नेता किस हद तक जा सकते हैं।