भारत में हेल्थकेयर का उद्देश्य आम जनता को बेहतर इलाज और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना होना चाहिए, लेकिन आज निजी अस्पतालों ने इसे एक मुनाफे का उद्योग बना दिया है। आधुनिक सुविधाएं, ग्लैमर और नामी डॉक्टरों की मौजूदगी के पीछे छिपा एक ऐसा तंत्र काम करता है, जो आम आदमी के स्वास्थ्य को नहीं, बल्कि खुद के “वेल्थकेयर” को प्राथमिकता देता है।
कोविड-19 महामारी के दौरान यह तस्वीर और भी स्पष्ट हुई। जब लोग जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहे थे, तब कई निजी अस्पतालों ने अवसर का लाभ उठाते हुए इलाज के नाम पर लोगों से लाखों रुपये की वसूली की। महाराष्ट्र सरकार को हस्तक्षेप कर के इलाज की दरें नियंत्रित करनी पड़ीं, पर बावजूद इसके, जमीनी स्तर पर लूट की घटनाएं सामने आती रहीं। कोरोना जैसी महामारी के दौरान जब इंसानियत की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब निजी अस्पतालों का व्यवहार पूरी तरह से मुनाफाखोरी पर आधारित था।
एक अध्ययन में सामने आया है कि निजी अस्पताल दवाओं, उपभोग्य सामग्रियों और डायग्नोस्टिक सेवाओं पर 1700% तक मुनाफा कमा रहे हैं। मामूली कीमत पर मिलने वाले कैथेटर, सिरिंज और अन्य चिकित्सकीय उपकरणों को मरीजों को कई गुना महंगे दामों पर बेचा जाता है। यही नहीं, मरीजों को मजबूर किया जाता है कि वे अस्पताल की ही फार्मेसी से दवाएं खरीदें और बाहर से कोई सामान न लाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस लूट के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया और राज्यों को निर्देश दिया कि वे ऐसी नीतियां बनाएं जो निजी अस्पतालों को मरीजों को लूटने से रोक सकें। कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा कोई व्यापार नहीं है, बल्कि यह एक सेवा है जो हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। लेकिन निजी अस्पतालों ने इसे एक लाभदायक व्यवसाय बना दिया है, जिसमें आम आदमी सिर्फ एक ग्राहक बनकर रह गया है।
झारखंड में हाल ही में एक और मामला सामने आया जब निजी अस्पतालों ने आयुष्मान भारत योजना से बाहर निकलने की धमकी दी। उन्होंने दावा किया कि उन्हें सरकार से भुगतान में देरी हो रही है। लेकिन इसका असर गरीब मरीजों पर पड़ा जो इस योजना के अंतर्गत मुफ्त इलाज की उम्मीद लगाए बैठे थे। जब निजी अस्पताल इस योजना में शामिल होकर भी पूरी निष्ठा से सेवा नहीं देते, तब सवाल उठता है कि इनका असली उद्देश्य क्या है?
ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह निजी अस्पतालों की जवाबदेही सुनिश्चित करे और स्वास्थ्य क्षेत्र को पूरी तरह से पारदर्शी बनाए। इलाज के नाम पर हो रही इस अवैध वसूली पर नकेल कसना जरूरी है। साथ ही, मरीजों और उनके परिवारों को भी जागरूक होने की जरूरत है कि वे अपने अधिकारों को समझें और अनावश्यक इलाज या अत्यधिक बिलिंग के खिलाफ आवाज उठाएं।
हेल्थकेयर का मतलब केवल मशीनें और आलीशान बिल्डिंग्स नहीं होते, बल्कि सेवा, सहानुभूति और भरोसा ही इसकी असली आत्मा है। यदि इस भावना को दरकिनार कर केवल लाभ कमाना ही उद्देश्य बन जाए, तो हेल्थकेयर नहीं, “वेल्थकेयर” ही बचेगा – और ये लोकतंत्र में एक खतरनाक संकेत होगा। ऐसे में आवश्यक है कि स्वास्थ्य सेवा को फिर से सेवा के मूल भाव में लाया जाए, जहां मरीज़ सिर्फ एक ग्राहक नहीं, बल्कि एक जीवन हो।