उदयपुर कन्हैयालाल हत्याकांड: हत्यारे मोहम्मद जावेद को मिली जमानत पर उठे गंभीर सवाल, न्याय व्यवस्था पर मंथन जरूरी

उदयपुर के दर्जी कन्हैयालाल की दिनदहाड़े की गई नृशंस हत्या को देश कभी नहीं भुला सकता। जून 2022 में हुई इस वीभत्स घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर साझा कर हत्यारों ने न केवल जुर्म कबूला, बल्कि खुलेआम धार्मिक कट्टरता और आतंक की मिसाल भी पेश की थी। यह घटना न सिर्फ एक निर्दोष की हत्या थी, बल्कि भारत की आस्था, एकता और कानून व्यवस्था के लिए भी एक खुली चुनौती थी।



इस मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने जांच की और मोहम्मद जावेद समेत 11 आरोपियों के खिलाफ साजिश, आतंक और हत्या की धाराओं में केस दर्ज किया गया। इन आरोपियों में से कई ने पाकिस्तान में बैठे अपने हैंडलर्स से संपर्क में रहकर इस हत्या को अंजाम दिया। हत्या से पहले और बाद में वीडियो बनाए गए, हथियार तैयार किए गए, और सबूत भी मिले। आरोपियों के खून के नमूने, भागने की फुटेज और जिस फैक्ट्री में वे काम करते थे वहां हथियार बनाए जाने के प्रमाण भी जांच में सामने आए।

लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतने ठोस साक्ष्यों और स्वीकारोक्ति के बावजूद राजस्थान हाई कोर्ट ने मोहम्मद जावेद को जमानत दे दी। इससे पहले एक अन्य आरोपी फरहाद मोहम्मद उर्फ बबला को भी जमानत मिल चुकी है। अदालत ने यह कहते हुए जमानत दी कि अभियोजन पक्ष यह सिद्ध नहीं कर सका कि जावेद हत्या की साजिश में सीधे तौर पर शामिल था या कन्हैयालाल की दुकान पर मौजूद था।

यहां न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठते हैं। जब हत्या का वीडियो मौजूद है, आरोपी खुलकर हत्या कबूल कर चुके हैं, और विदेशी आतंकी संपर्क स्थापित हो चुके हैं, तब कैसे अदालत यह मान सकती है कि अभियोजन साजिश सिद्ध नहीं कर सका? क्या इतने गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में भी हमें तकनीकीताओं में उलझकर न्याय को टाल देना चाहिए?

इसके विपरीत, उड़ीसा में ईसाई पादरी की हत्या के मामले में कोई वीडियो, कोई मोबाइल लोकेशन, कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं थे, फिर भी अदालत ने दारा सिंह को दोषी ठहराया। तो क्या अब भारत में न्याय का पैमाना अपराधी की पहचान, धर्म या विचारधारा से तय होने लगा है? यह स्थिति आम नागरिकों के लिए असहनीय और खतरनाक हो सकती है।

कन्हैयालाल के बेटे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस जमानत को चुनौती दी है। उनका कहना है कि अदालत ने UAPA की धारा 43D(5) के तहत जरूरी बिंदुओं की उपेक्षा की और मामले की गंभीरता को नजरअंदाज किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए राजस्थान सरकार और NIA से जवाब मांगा है।

आज भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है जहां हर नागरिक न्याय की उम्मीद करता है। लेकिन यदि इतने जघन्य अपराधों के आरोपी भी साक्ष्यों की अनदेखी के चलते रिहा होते रहें, तो यह न्याय व्यवस्था में जनता के विश्वास को गहरी चोट पहुंचाएगा। न्याय सिर्फ तकनीकीता नहीं, बल्कि सच्चाई और तर्क का सहारा होना चाहिए।

यह आवश्यक हो गया है कि देश की न्यायिक प्रणाली ऐसे मामलों में तीव्रता, संवेदनशीलता और निष्पक्षता से काम करे। वरना एक तरफ आतंक बढ़ेगा, और दूसरी ओर आम नागरिक कानून पर से भरोसा खो देगा। कन्हैयालाल सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, वह न्याय, विश्वास और मानवता का प्रतीक बन गए हैं। ऐसे में उनके हत्यारों को सजा दिलाना सिर्फ एक परिवार का नहीं, पूरे देश का नैतिक दायित्व है।