देश में चर्चित शख्सियतों के बीच होने वाली ज़ुबानी जंग हमेशा सुर्खियों में रहती है। ऐसी ही एक नोकझोंक फिर से सामने आई है, जिसमें दृष्टि आईएएस कोचिंग के संस्थापक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति और मशहूर लोकगायिका व सामाजिक टिप्पणीकार नेहा सिंह राठौर के बीच पुराना विवाद एक बार फिर ताज़ा हो गया है।
दरअसल, इस बार चर्चा की शुरुआत तब हुई जब डॉ. दिव्यकीर्ति ने अपनी एक हालिया क्लास के दौरान अप्रत्यक्ष रूप से कुछ टिप्पणियाँ कीं, जिन्हें नेहा सिंह राठौर पर तंज के रूप में देखा जा रहा है। डॉ. दिव्यकीर्ति ने कहा — “लोग कह रहे थे कि कब करोगे कब करोगे, 10 दिन हो गए। जैसे ही हमला किया तो बोले De-escalate। जैसे ही थोड़ा बड़ा वैसे ही Say No To War।” यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हुई और यूज़र्स ने इसे नेहा सिंह राठौर पर कटाक्ष के रूप में देखा।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह पूरा मामला तब शुरू हुआ था जब कुछ साल पहले नेहा सिंह राठौर के पति हिमांशु सिंह, जो कि दृष्टि आईएएस में कार्यरत थे, को नौकरी से निकाल दिया गया था। उस समय यह दावा किया गया था कि उनके विचार और दृष्टिकोण संस्थान की नीति से मेल नहीं खाते थे। इसके बाद नेहा ने सोशल मीडिया के ज़रिए इस फैसले की जमकर आलोचना की थी और डॉ. विकास दिव्यकीर्ति को कटघरे में खड़ा किया था।
नेहा सिंह राठौर अपने व्यंग्यात्मक लोक गीतों के लिए जानी जाती हैं, जो सत्ता और सामाजिक मुद्दों पर कटाक्ष करते हैं। उनके “यूपी में का बा” जैसे गीतों ने उन्हें व्यापक लोकप्रियता दिलाई, लेकिन साथ ही राजनीतिक और वैचारिक रूप से विभाजित भारत में आलोचना भी खूब हुई।
वर्तमान जुबानी हमला और उसकी व्याख्या
डॉ. दिव्यकीर्ति की इस नई टिप्पणी को नेहा सिंह राठौर के हालिया बयानों और रुख से जोड़ा जा रहा है। जब देश में कुछ घटनाओं को लेकर सामाजिक तनाव बढ़ता है, तो नेहा जैसे कलाकार अपने गीतों या पोस्ट के ज़रिए प्रतिक्रिया देते हैं। लेकिन जब कोई मामला तीव्र रूप लेता है, तो वे शांति की बात करने लगते हैं — यही संकेत डॉ. दिव्यकीर्ति अपनी बात में दे रहे हैं।
हालाँकि, यह बयान उन्होंने सीधे तौर पर किसी का नाम लिए बिना दिया, लेकिन सोशल मीडिया पर इसे नेहा सिंह राठौर से जोड़कर देखा जा रहा है। ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर यह बहस तेज़ हो गई है कि क्या यह एक शिक्षक की गरिमा के अनुकूल है, या यह व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी का हिस्सा है।
सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
ट्विटर पर एक यूज़र ने लिखा — "अब डॉ. दिव्यकीर्ति भी व्यंग्य करने लगे हैं, लगता है 'यूपी में का बा' का असर इन पर भी हो गया है।" वहीं, एक और यूज़र ने कहा — "साफ़ है कि पुरानी खुन्नस अभी तक गई नहीं, और अब टीचर बनाम कलाकार की लड़ाई फिर ज़िंदा हो गई है।"
निष्कर्ष
यह विवाद सिर्फ दो प्रसिद्ध शख्सियतों की आपसी कटुता नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे आज का डिजिटल युग विचारों के संघर्ष को सार्वजनिक बहस में तब्दील कर देता है। विकास दिव्यकीर्ति जैसे शिक्षकों की बातें और नेहा सिंह राठौर जैसे कलाकारों की अभिव्यक्ति जब टकराती हैं, तो समाज में बौद्धिक हलचल मच जाती है। यह जरूरी है कि ऐसे मुद्दों को संजीदगी से समझा जाए और व्यक्तिगत हमलों की बजाय विचारधारा की स्वस्थ बहस को बढ़ावा दिया जाए।
इस घटनाक्रम से यह भी स्पष्ट होता है कि पब्लिक फिगर्स को अपनी बात रखते समय ज़िम्मेदारी और विवेक दोनों का परिचय देना चाहिए, क्योंकि आज की दुनिया में हर बात सार्वजनिक मंच का हिस्सा बन जाती है।