महाराष्ट्र के बीड जिले से सामने आई यह खबर न केवल झकझोर देने वाली है, बल्कि यह भारतीय समाज में मजदूर महिलाओं की दुर्दशा और शोषण का जीता-जागता प्रमाण भी है। बीते कुछ वर्षों में इस जिले में गन्ना काटने वाली हजारों महिलाओं के गर्भाशय (बच्चेदानी) जबरन निकाल दिए गए। इन सर्जरियों का कारण न कोई गंभीर बीमारी थी, न कोई चिकित्सकीय जरूरत, बल्कि वजह थी—मासिक धर्म के दौरान छुट्टी की मांग। गन्ना ठेकेदारों को यह मंजूर नहीं था कि महिलाएं कुछ दिन काम न करें, क्योंकि इससे उन्हें आर्थिक नुकसान होता था।
एक रिपोर्ट के अनुसार, बीते 10 वर्षों में बीड जिले में करीब 13,000 से ज्यादा महिलाओं के गर्भाशय निकाले गए हैं। हाल ही में 2024 की गन्ना कटाई से पहले 843 महिलाओं की हाइजेक्टॉमी कर दी गई। यह संख्या न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह दर्शाती है कि किस प्रकार महिलाओं के शरीर के साथ एक उपकरण की तरह व्यवहार किया जा रहा है। इन महिलाओं में से अधिकांश की उम्र 25 से 35 वर्ष के बीच थी, और कई ने तो अपनी इच्छा के विरुद्ध यह ऑपरेशन केवल इसलिए करवाया, क्योंकि ठेकेदारों द्वारा मानसिक दबाव डाला गया या कर्ज में फंसाया गया था।
महिलाएं जब मासिक धर्म के दौरान आराम या छुट्टी की मांग करती थीं, तो उन्हें बताया जाता था कि अगर उन्होंने छुट्टी ली तो काम से निकाल दिया जाएगा या फिर जुर्माना लगाया जाएगा। कुछ मामलों में तो महिलाओं को जानबूझकर इस ऑपरेशन के लिए प्रेरित किया गया ताकि वे लगातार बिना किसी अवकाश के काम करती रहें। कई महिलाओं को तो यह तक नहीं बताया गया कि ऑपरेशन के बाद उनके शरीर पर क्या असर पड़ेगा।
गर्भाशय हटाने की इस जबरन प्रक्रिया ने न केवल महिलाओं की शारीरिक स्थिति को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि मानसिक और सामाजिक स्तर पर भी उन्हें गंभीर संकट में डाल दिया है। महिलाओं को हार्मोनल असंतुलन, असमय बुढ़ापा, हड्डियों की कमजोरी, यौन जीवन में समस्याएं और मानसिक तनाव जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।
इस पूरे मामले में राज्य सरकार की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। हालांकि हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने जिला स्तर पर निगरानी समितियां गठित करने की घोषणा की है, जो इन सर्जरियों की निगरानी करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि कोई भी महिला बिना चिकित्सकीय आवश्यकता के इस प्रकार के ऑपरेशन की शिकार न हो। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर इन समितियों की आवश्यकता तब क्यों महसूस की गई, जब हजारों महिलाओं के जीवन पहले ही बर्बाद हो चुके हैं?
यह मामला केवल स्वास्थ्य और कानून का नहीं है, यह महिलाओं के मूल अधिकारों और उनकी गरिमा का भी मामला है। किसी भी महिला को केवल इसलिए अपने शरीर के एक अहम हिस्से से हाथ नहीं धोना चाहिए क्योंकि वह एक मजदूर है और वह मासिक धर्म के दौरान आराम चाहती है। यह न केवल श्रम कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि मानवाधिकारों की भी घोर अवहेलना है।
जरूरत है कि इस प्रकार के अमानवीय कृत्यों पर सख्त से सख्त कार्रवाई हो, दोषियों को दंड मिले और महिलाओं को इस प्रकार के शोषण से बचाने के लिए ठोस नीति बने। साथ ही समाज को भी इस विषय पर संवेदनशील होना होगा और ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
यदि अब भी हम चुप रहे तो आने वाले समय में यह अन्य जिलों और राज्यों तक फैल सकता है, और यह हमारे समाज के लिए एक गहरा कलंक बन जाएगा। बीड की पीड़ित महिलाएं आज एक सशक्त आवाज़ की मांग कर रही हैं—क्या हम उन्हें सुन पाएंगे?