पति ने पकड़ी पत्नी की अश्लील चैटिंग, झगड़े के बाद पत्नी ने लगाया दहेज का झूठा केस – एक सोचने पर मजबूर कर देने वाली सच्चाई

आज के समय में जहां समाज महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है, वहीं कुछ मामलों में कानूनों का गलत इस्तेमाल चिंता का विषय बनता जा रहा है। हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने समाज को झकझोर कर रख दिया है। एक पति, जो विदेश में नौकरी करता है, छुट्टी पर भारत आया और अपनी पत्नी का मोबाइल चेक किया। मोबाइल की चैटिंग देखकर उसके होश उड़ गए। पत्नी ने अपनी एक दोस्त से चैटिंग में यह स्वीकार किया था कि उसने अब तक 25 पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं और उसने सभी पुरुषों के नाम भी उस चैट में लिख रखे थे।

पति ने जब इस पर सवाल उठाया, तो दोनों के बीच झगड़ा हुआ। यह झगड़ा इतना बढ़ गया कि पत्नी ने अपने पति पर दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया। यह स्थिति न केवल पति के लिए अपमानजनक रही, बल्कि उसके करियर और मानसिक स्थिति पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। एक ओर जहां पति अपनी पत्नी के असामान्य व्यवहार से परेशान था, वहीं दूसरी ओर अब उसे झूठे केस की कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ रही है।

यह कोई अकेला मामला नहीं है। भारत में कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जहां दहेज कानून का दुरुपयोग कर पुरुषों को झूठे केसों में फंसाया जाता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है कि यदि उन्हें ससुराल से प्रताड़ना या दहेज की मांग की जा रही हो, तो वे शिकायत दर्ज करा सकती हैं। परंतु, दुर्भाग्यवश यह कानून कुछ मामलों में बदले की भावना से उपयोग किया जाता है।

इस घटना ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कानून का ऐसा इस्तेमाल महिलाओं के पक्ष में न्याय सुनिश्चित करता है या पुरुषों के लिए अन्याय का कारण बनता है? ऐसी घटनाएं समाज में वैवाहिक रिश्तों की नींव को हिलाकर रख देती हैं। एक तरफ जहां पत्नी का खुलेआम इस तरह के संबंधों को स्वीकारना वैवाहिक विश्वास के खिलाफ है, वहीं दूसरी ओर उसकी यह हरकत कि वह झगड़े के बाद पति पर झूठा आरोप लगाए, कानून की मर्यादा को भी ठेस पहुंचाती है।

भारत का न्यायिक तंत्र इस तरह के मामलों को लेकर पहले से ही सतर्क है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार यह कहा है कि धारा 498A का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। अदालतें अब इस प्रकार के मामलों की गंभीरता से जांच कर रही हैं और यदि पाया जाता है कि शिकायत केवल प्रतिशोध या झूठे आरोपों पर आधारित है, तो उसे खारिज कर दिया जाता है।

यह मामला हमें एक बड़ी सच्चाई से रूबरू कराता है – कि शादी जैसे पवित्र रिश्ते में विश्वास, ईमानदारी और पारदर्शिता अनिवार्य हैं। यदि कोई पक्ष इन मूल्यों की अवहेलना करता है और फिर कानूनी हथियारों का दुरुपयोग करता है, तो यह केवल एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरे परिवार और समाज के लिए विनाशकारी सिद्ध होता है।

हमारे समाज को आवश्यकता है कि ऐसे मामलों में दोनों पक्षों की बातों को निष्पक्षता से सुना जाए और अदालतें तथ्य और प्रमाण के आधार पर न्याय करें। साथ ही, ऐसे झूठे मामलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि कानून का डर बना रहे और उसका गलत उपयोग रोका जा सके।

इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कानून केवल अधिकार नहीं बल्कि जिम्मेदारी भी है। यदि इन जिम्मेदारियों का गलत इस्तेमाल होता रहा, तो समाज में रिश्तों का ताना-बाना और भी कमजोर होता चला जाएगा।