ईरान-इज़राइल संघर्ष में कौन सही? जानिए तेल अवीव हमले की सच्चाई और इंसानियत का पक्ष

पश्चिम एशिया में एक बार फिर से तनाव का माहौल है, और इस बार मामला केवल दो देशों के बीच का नहीं बल्कि पूरी मानवता पर सवाल उठाता है। हाल ही में जो तस्वीरें सामने आई हैं, वे इज़राइल के प्रमुख शहर तेल अवीव की हैं, जहां ईरान ने मिसाइल हमले किए। इन हमलों में कई मासूम नागरिकों की जान गई और कई घायल हो गए। यह हमला इज़राइल द्वारा ईरान के सैन्य ठिकानों पर की गई एयरस्ट्राइक के जवाब में हुआ है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या जवाबी हमला आम लोगों को निशाना बनाकर देना उचित है?



इज़राइल ने अपनी कार्रवाई में सिर्फ ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया था। इसका मकसद ईरान के बढ़ते खतरे को रोकना और क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखना था। इस हमले में ईरान के कई महत्वपूर्ण सैन्य अधिकारी और वैज्ञानिक मारे गए। यह एक योजनाबद्ध और सामरिक हमला था, जिसमें आम नागरिकों को हानि न पहुंचे, इसका पूरा ध्यान रखा गया। लेकिन ईरान का जवाब पूरी तरह से क्रूर और असंवेदनशील था।

ईरान ने सीधे तौर पर तेल अवीव, यरुशलम और अन्य घनी आबादी वाले क्षेत्रों में मिसाइल और ड्रोन हमले किए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईरान ने करीब 200 बैलिस्टिक मिसाइलें और दर्जनों ड्रोन इज़राइल पर दागे, जिनमें से अधिकांश को इज़राइली डिफेंस सिस्टम ने रोक लिया, लेकिन कुछ मिसाइलें अपने लक्ष्य तक पहुंच गईं। इन हमलों में अब तक एक महिला की मौत हो चुकी है और कई नागरिक घायल हुए हैं। घायल लोगों में बच्चे और बुज़ुर्ग भी शामिल हैं।



अब सवाल ये उठता है कि जब इज़राइल ने केवल सैन्य ठिकानों पर हमला किया, तो ईरान ने नागरिक क्षेत्रों को क्यों निशाना बनाया? क्या यह जवाब था या केवल बदले की आग में जलती मानवता पर हमला? अगर आपको अब भी समझ नहीं आ रहा कि इस संघर्ष में किसका पक्ष लेना चाहिए, तो ज़रा सोचिए – एक देश जो सैन्य ठिकानों को निशाना बनाता है और एक देश जो मासूम नागरिकों को मारता है, दोनों में से कौन सही है?

इस हमले के बाद तेल अवीव की सड़कों पर तबाही का मंजर था। कई इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं और लोगों में दहशत फैल गई। अस्पतालों में घायलों की भरमार हो गई और प्रशासन ने आपातकालीन सेवाओं को तुरंत सक्रिय किया। इज़राइल के रक्षा मंत्री ने इस हमले को “सीधा नागरिकों पर हमला” बताया और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करार दिया।

दुनिया भर में इस घटना को लेकर चिंता जताई जा रही है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों ने ईरान की इस कार्रवाई की निंदा की है और दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब भी यही है कि क्या इस संघर्ष में आम लोगों की जान को यूं ही खतरे में डाला जाएगा?

इस पूरी घटना से यह साफ हो जाता है कि इज़राइल ने सैन्य रणनीति अपनाई जबकि ईरान ने बदले की भावना में इंसानियत को ताक पर रख दिया। अगर मानवता की बात की जाए, तो इज़राइल ने जहां नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखा, वहीं ईरान ने नागरिकों को ही निशाना बनाया।

अगर आपको अब भी समझ नहीं आ रहा कि किसका पक्ष लेना है, तो सच्चाई खुद अपना रास्ता दिखा रही है। इज़राइल ने जहाँ केवल सैन्य ठिकानों पर हमला किया, वहीं ईरान ने आम नागरिकों को निशाना बनाया, जो कि पूरी तरह से निंदनीय और अमानवीय है।

इस संघर्ष ने एक बार फिर से ये साबित कर दिया है कि युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता को होता है। इसीलिए ज़रूरत है ऐसे फैसलों की जो इंसानियत को प्राथमिकता दें और दुनिया को एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण स्थान बनाए रखें।