TikTok Governance: कैमरे के सामने ‘नायक स्टाइल’ फैसलों से लोकतंत्र को कितना नुकसान?

आज के डिजिटल युग में राजनीति केवल नीतियों और प्रशासन तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब सोशल मीडिया पर दिखावे और वायरल वीडियो का प्रभाव भी इसके केंद्र में आ गया है। गोवा के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे द्वारा गोवा मेडिकल कॉलेज में एक डॉक्टर (CMO) पर कैमरे के सामने की गई सार्वजनिक फटकार और तत्काल सस्पेंशन ने इस नई प्रवृत्ति को उजागर कर दिया है, जिसे अब लोग "TikTok Governance" कहने लगे हैं।

इस घटना की शुरुआत तब हुई जब किसी मरीज की शिकायत पर स्वास्थ्य मंत्री खुद अस्पताल पहुंचे और कैमरे को ऑन कर CMO को सार्वजनिक रूप से डांटने लगे। इस दौरान उन्होंने उंगली उठाकर धमकी देने के अंदाज में बात की और वहीं खड़े होकर डॉक्टर को निलंबित करने की घोषणा कर दी। यह पूरी घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और मंत्री को लगा कि उन्होंने जनता की नजरों में तुरंत न्याय कर दिया है। लेकिन यह जल्दबाज़ी भारी पड़ी।



घटना के वायरल होने के बाद आलोचना की बौछार शुरू हो गई। विशेषज्ञों और आम जनता ने सवाल उठाए कि क्या किसी भी अधिकारी को बिना जांच के सिर्फ पब्लिक इमेज सुधारने के लिए यूं सस्पेंड करना उचित है? स्थिति तब और गंभीर हो गई जब गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत को खुद इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और यह स्पष्ट करना पड़ा कि CMO का सस्पेंशन वापस लिया जा रहा है, क्योंकि कोई औपचारिक जांच नहीं हुई थी।

इस पूरे मामले ने भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है — क्या फैसले अब भी तथ्यों, जांच और प्रक्रिया पर आधारित होते हैं या फिर कैमरे के सामने ‘फेस सेविंग’ और वायरल होने की होड़ ने निर्णय प्रणाली को ही चुनौती दे दी है?

"नायक मूवी स्टाइल" यानी कैमरे के सामने तत्काल कार्रवाई अब एक फैशन बन गया है। लेकिन ऐसा करना न केवल किसी अधिकारी की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि शासन प्रणाली की पारदर्शिता और न्यायिक प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े करता है। यदि कोई मंत्री केवल एक कैमरे के सामने अपनी छवि चमकाने के लिए बिना जांच के फैसला करता है, तो यह ना केवल प्रशासनिक अराजकता को जन्म देता है, बल्कि इससे सिस्टम में काम करने वाले अन्य अधिकारियों का मनोबल भी टूटता है।

सोशल मीडिया की तेज़ रफ्तार और "वायरल" की भूख के इस दौर में सरकारों और नेताओं के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे जिम्मेदारी के साथ निर्णय लें। दिखावा और नाटक जनता को भले कुछ समय के लिए प्रभावित कर दें, लेकिन लंबे समय में इससे लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है।

निष्कर्ष
TikTok Governance या कैमरे के सामने फैसले लेना एक खतरनाक ट्रेंड बनता जा रहा है। यह लोकतांत्रिक प्रणाली के मूल्यों को कमजोर करता है और सार्वजनिक सेवा के अधिकारियों की गरिमा को चोट पहुंचाता है। नेताओं को चाहिए कि वे सोशल मीडिया की चकाचौंध से हटकर गंभीरता और प्रक्रिया के साथ निर्णय लें ताकि न केवल जनहित सुरक्षित रहे, बल्कि देश की प्रशासनिक व्यवस्था पर लोगों का भरोसा भी बना रहे।