राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल नाथद्वारा मंदिर को लेकर हाल ही में एक बड़ा सवाल लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। हर साल करोड़ों रुपये का दान प्राप्त करने वाला यह मंदिर अब एक ऐसे मुद्दे के रूप में सामने आ रहा है, जहां हिंदू समाज यह जानने की कोशिश कर रहा है कि आखिरकार मंदिर में चढ़ाया गया यह धन किस दिशा में खर्च हो रहा है। क्या यह धन केवल धार्मिक कार्यों तक सीमित रहता है, या फिर इसका उपयोग उन योजनाओं में भी होता है जिनका धर्म से सीधा कोई संबंध नहीं है?
नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी का मंदिर देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यह मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है और यहां हर साल लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं। जानकारी के अनुसार, इस मंदिर को सालाना लगभग 85 करोड़ रुपये का दान प्राप्त होता है। यह राशि किसी भी निजी या सरकारी संस्था के लिए एक बड़ी आर्थिक शक्ति के समान है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह धन वास्तव में धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग हो रहा है?
यह मुद्दा उस समय ज्यादा गरमाया जब राजस्थान विधानसभा में इस मंदिर की आय और उसके वितरण को लेकर विधायकों ने सवाल उठाए। विधानसभा में बाकायदा इस पर डिबेट हुई और बताया गया कि मंदिर की आय का एक बड़ा हिस्सा सड़कों के निर्माण, धर्मनिरपेक्ष योजनाओं और स्थानीय विकास योजनाओं में खर्च किया जा रहा है। यह सुनकर बहुत से लोगों के मन में सवाल उठे कि क्या मंदिर में चढ़ाया गया धन सिर्फ धार्मिक गतिविधियों के लिए नहीं, बल्कि सरकार के अन्य कार्यों में भी इस्तेमाल हो रहा है?
मंदिर के संचालन के लिए ‘नाथद्वारा मंदिर अधिनियम 1959’ के तहत एक मंदिर बोर्ड का गठन किया गया है, जो इस पवित्र स्थल की पूरी आय और खर्च का प्रबंधन करता है। इस अधिनियम में स्पष्ट उल्लेख है कि मंदिर की संपत्ति, आय और दान राशि का उपयोग मंदिर की सेवा, धार्मिक परंपराओं, तीर्थयात्रियों की सुविधा और धार्मिक आयोजनों में किया जाना चाहिए। लेकिन कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय लोग आरोप लगाते हैं कि वर्तमान में इस अधिनियम का पालन केवल नाम मात्र का रह गया है।
राज्य सरकार द्वारा मंदिरों की आय का उपयोग राज्य की अन्य योजनाओं में करने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। नाथद्वारा मंदिर का मामला इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि यह मंदिर केवल राजस्थान ही नहीं, पूरे भारत के वैष्णव हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। जब मंदिर की राशि का उपयोग उन परियोजनाओं में किया जाता है जो धर्मनिरपेक्ष या राजनीतिक प्रकृति की होती हैं, तो इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है।
नाथद्वारा मंदिर में आस्था रखने वाले लाखों लोग यह जानना चाहते हैं कि उनकी श्रद्धा से जो दान एकत्र किया गया है, वह सही दिशा में उपयोग हो रहा है या नहीं। यह धन केवल मंदिर की सेवा, जरूरतमंद श्रद्धालुओं के कल्याण, और धार्मिक परंपराओं को सहेजने के लिए ही उपयोग में आना चाहिए। यदि सरकार इस धन का उपयोग सड़कों, बिजली, पानी और अन्य सेकुलर परियोजनाओं में कर रही है, तो यह न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि एक बड़े वर्ग की आस्था को भी चोट पहुंचाता है।
इस मुद्दे पर पारदर्शिता की मांग बढ़ रही है। सरकार और मंदिर प्रशासन को चाहिए कि वे मंदिर की आय और खर्च का सार्वजनिक लेखा-जोखा दें और जनता को यह भरोसा दिलाएं कि उनका दिया गया दान धर्म और आस्था की सेवा में लगाया जा रहा है न कि किसी राजनीतिक या अन्य गैर-धार्मिक उद्देश्य में।
नाथद्वारा मंदिर की यह स्थिति केवल एक मंदिर का मुद्दा नहीं, बल्कि यह समूचे हिंदू धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन और उनके आर्थिक संसाधनों के उपयोग को लेकर एक व्यापक बहस का विषय है। अब समय आ गया है कि मंदिरों की आय का उपयोग पूरी पारदर्शिता और धार्मिक आस्था के अनुरूप किया जाए, जिससे कि न केवल मंदिर की गरिमा बनी रहे बल्कि जनता की श्रद्धा भी कायम रह सके।