बांग्लादेश की राजनीति और न्याय व्यवस्था में एक बड़ा मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ नेता एटीएम आज़हरुल इस्लाम की मौत की सज़ा को रद्द कर दिया। यह फैसला केवल एक व्यक्ति की रिहाई नहीं है, बल्कि इससे जुड़े ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं पर भी गहरी छाया डालता है। वर्ष 2014 में एटीएम आज़हरुल इस्लाम को बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम यानी 1971 के युद्ध के दौरान किए गए कथित युद्ध अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए मौत की सज़ा सुनाई गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया है।
एटीएम आज़हरुल इस्लाम, जो कि बांग्लादेश की कट्टरपंथी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ नेता रहे हैं, को उस समय मानवता के विरुद्ध अपराधों के तहत सज़ा सुनाई गई थी। उन पर आरोप था कि 1971 के युद्ध के दौरान उन्होंने पाकिस्तानी सेना का साथ दिया और कई नरसंहारों में उनकी भूमिका थी। लेकिन अब देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिले, जिसके कारण उनकी मौत की सज़ा को रद्द किया जाता है।
इस फैसले के बाद बांग्लादेश की सड़कों पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। ढाका विश्वविद्यालय के वामपंथी छात्र संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। इन संगठनों का कहना है कि यह फैसला न्याय के खिलाफ है और युद्ध अपराधों के पीड़ितों के लिए यह एक बड़ा झटका है। कई लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि क्या इस फैसले के पीछे राजनीतिक दबाव था या फिर न्यायपालिका ने निष्पक्ष फैसला लिया।
जहां एक ओर विरोध हो रहा है, वहीं एटीएम आज़हरुल इस्लाम के समर्थकों ने इस निर्णय का स्वागत किया है और इसे न्याय की जीत बताया है। उनके वकीलों और पार्टी नेताओं का कहना है कि उन्हें राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया गया था और इस फैसले से साफ हो गया है कि वे निर्दोष थे। इस निर्णय के बाद अब यह बहस और तेज हो गई है कि बांग्लादेश में युद्ध अपराधों के ट्रायल कितने निष्पक्ष और पारदर्शी रहे हैं।
कानूनी विश्लेषकों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बांग्लादेश की न्यायिक प्रणाली में एक नई बहस को जन्म देगा। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह फैसला सबूतों के अभाव में दिया गया है, तो न्यायपालिका की ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। लेकिन यदि इसमें कोई राजनीतिक हस्तक्षेप हुआ है, तो यह बांग्लादेश की लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए एक गंभीर खतरा है।
बांग्लादेश में 1971 के युद्ध अपराधों की जांच और ट्रायल को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। सरकार ने 'इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल' की स्थापना कर कई नेताओं को सज़ा सुनाई थी, लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने कई बार इन ट्रायल्स की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। एटीएम आज़हरुल इस्लाम का मामला भी ऐसे ही मामलों में से एक है, जिसे लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी चर्चाएं होती रही हैं।
अंततः यह कहना उचित होगा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्यायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन यह बांग्लादेश के समाज और राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे चुका है। युद्ध अपराधों पर न्याय और राजनीतिक निष्पक्षता के बीच यह फैसला एक जटिल तस्वीर पेश करता है। आने वाले दिनों में इस निर्णय का प्रभाव न केवल बांग्लादेश की राजनीति पर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देखा जा सकता है।