बांग्लादेश इस समय एक भयावह आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है। देश की औद्योगिक रीढ़ माने जाने वाले टेक्सटाइल, सिरेमिक, स्टील जैसे प्रमुख क्षेत्र ऊर्जा संकट के कारण लड़खड़ा गए हैं। उद्योगपतियों ने हाल ही में चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने शीघ्र कोई कदम नहीं उठाया तो बांग्लादेश को अकाल जैसे हालात का सामना करना पड़ सकता है। इस संकट के केंद्र में है गैस की भारी कमी, जिससे हजारों फैक्ट्रियाँ प्रभावित हुई हैं और बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियाँ खतरे में पड़ चुकी हैं।
बांग्लादेश टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन (BTMA) के अनुसार, लगभग 400 गैस-आधारित फैक्ट्रियाँ अब पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रही हैं। उत्पादन 40 से 50 प्रतिशत तक घट चुका है और इससे देश का निर्यात बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। यह स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब उद्योगपति सरकार पर यह आरोप लगाते हैं कि वह उस गैस के लिए शुल्क वसूल रही है, जो वास्तव में आपूर्ति ही नहीं की जा रही।
इस संकट से बांग्लादेश के निवेश माहौल पर भी नकारात्मक असर पड़ा है। विदेशी निवेशक अब बांग्लादेश को अस्थिर और जोखिम भरा बाजार मानने लगे हैं। कुछ उद्योगपतियों का कहना है कि वर्तमान सरकार की ऊर्जा नीति और प्रशासनिक निष्क्रियता इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने इसे "आर्थिक पतन की ओर बढ़ते कदम" कहा है।
राजनीतिक हालात भी इस संकट को और गहरा कर रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद छोड़ने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अस्थायी सरकार बनाई गई थी। यूनुस, जो पहले सामाजिक उद्यमों के लिए जाने जाते थे, अब शासन में अनुभवहीनता और धीमी गति से फैसले लेने के कारण आलोचनाओं के घेरे में हैं। विरोधी दलों का आरोप है कि उनकी सरकार आर्थिक सुधारों में विफल रही है।
यूनुस ने हाल ही में कहा कि बांग्लादेश का यह संकट किसी अंतरराष्ट्रीय साजिश का नतीजा हो सकता है। उन्होंने दावा किया कि कुछ ताकतें बांग्लादेश को अस्थिर करके इस पर विदेशी प्रभुत्व स्थापित करना चाहती हैं, जिसमें भारत का नाम भी अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ा गया है। (Times of India)
सरकार की नीति और विपक्ष के बीच चल रही खींचतान से आम जनता का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। गैस की कमी से घरेलू उपभोक्ता भी परेशान हैं। फैक्ट्रियों में बंदी और नौकरियों में कटौती से बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। इसके साथ ही महंगाई भी चरम पर है, जिससे निम्न और मध्यम वर्ग की कमर टूट चुकी है।
यदि बांग्लादेश इस संकट से उबरना चाहता है तो उसे ऊर्जा क्षेत्र में तत्काल सुधार करने होंगे। सरकार को उद्योगपतियों और विपक्ष के साथ मिलकर व्यावहारिक समाधान निकालना होगा। साथ ही विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए एक स्थिर और पारदर्शी शासन की आवश्यकता है। जब तक राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता नहीं आती, तब तक बांग्लादेश का भविष्य अनिश्चित बना रहेगा।
इस गंभीर स्थिति में बांग्लादेश के लोगों को एकजुट होकर सरकार पर दबाव बनाना होगा कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करे और देश को एक और आर्थिक त्रासदी से बचाए। यदि अभी भी कदम नहीं उठाए गए, तो वह दिन दूर नहीं जब बांग्लादेश वाकई एक अकाल जैसी स्थिति में फंस जाएगा।