👋 Join Us इक्कीसवीं सदी भारत की: आत्मनिर्भर भारत की उड़ान से चीन और पश्चिम की हिली नींव

इक्कीसवीं सदी भारत की: आत्मनिर्भर भारत की उड़ान से चीन और पश्चिम की हिली नींव

भारत अब उस दौर में प्रवेश कर चुका है जिसे सही मायनों में "भारत का युग" कहा जा सकता है। इक्कीसवीं सदी भारत की है — यह सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि एक सच्चाई बनती जा रही है। आज जब पूरी दुनिया मंदी और आपूर्ति श्रृंखला की दिक्कतों से जूझ रही है, भारत तेज़ी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। चाहे वह रेलवे के लोकोमोटिव इंजन की मैन्युफैक्चरिंग हो, या आने वाले समय में फाइटर जेट के इंजन का स्वदेशी निर्माण — भारत ने साफ संदेश दे दिया है कि अब वह केवल उपभोक्ता नहीं, निर्माता भी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में गुजरात के दाहोद में लोकोमोटिव मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का उद्घाटन किया, जहाँ 9000 हॉर्सपावर वाले इलेक्ट्रिक इंजन का उत्पादन किया जाएगा। यह सिर्फ एक इंजन नहीं, बल्कि भारत की उत्पादन शक्ति और तकनीकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। इस परियोजना के साथ ही भारत रेलवे इंजन के निर्माण में अमेरिका और यूरोपीय देशों को भी पीछे छोड़ चुका है। भारतीय रेलवे ने 2024-25 में अब तक 1681 लोकोमोटिव का निर्माण किया है जो किसी भी विकसित देश से अधिक है।



दूसरी ओर, भारत अब रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की मिसाल बन रहा है। भारत और अमेरिका के बीच हुए ऐतिहासिक समझौते के तहत भारत में ही फाइटर जेट के लिए एफ-414 इंजन का निर्माण किया जाएगा। HAL और GE मिलकर भारत में इस इंजन को बनाएंगे जिससे न केवल भारत की तकनीकी ताकत बढ़ेगी, बल्कि वह विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता से मुक्त हो जाएगा। तेजस MK2 जैसे अत्याधुनिक फाइटर जेट अब पूरी तरह भारतीय तकनीक पर उड़ान भर सकेंगे।

हालांकि, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस बात को स्वीकार किया कि एयरो इंजन निर्माण अब भी एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए भारत ने फ्रांस की कंपनी Safran के साथ तकनीकी साझेदारी की दिशा में कदम बढ़ाया है, जिससे भारत को 100% तकनीक ट्रांसफर के जरिए अपने AMCA प्रोजेक्ट में सफलता मिलेगी। इसके अलावा, DRDO प्रमुख डॉ. समीर वी. कामत ने यह घोषणा की है कि भारत 6वीं पीढ़ी के जेट इंजन के स्वदेशी निर्माण में $4 से $5 बिलियन का निवेश करेगा।

भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए. पी. सिंह ने भी साफ किया है कि अब वायुसेना की प्राथमिकता स्वदेशी रक्षा प्रणाली है। उन्होंने कहा कि हम अपने देश में बने सिस्टम्स को अपनाएंगे, भले ही उनकी क्षमता थोड़ी कम हो, लेकिन यह आत्मनिर्भरता की दिशा में एक जरूरी और गौरवपूर्ण कदम होगा।

भारत की यह तकनीकी प्रगति और औद्योगिक विकास केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि चीन और पश्चिमी देशों के लिए भी एक बड़ा झटका है। आज जिस सामान को पश्चिमी देश 1000 रुपये में बनाते हैं, वही भारत में 100-150 रुपये में उच्च गुणवत्ता के साथ बनाना संभव हो रहा है। यह अंतर ही भारत को वैश्विक आर्थिक शक्ति बनाने की राह पर आगे बढ़ा रहा है।

इसलिए कहा जा सकता है कि इक्कीसवीं सदी सच में भारत की है। आत्मनिर्भर भारत का सपना अब हकीकत बन रहा है, और भारत केवल अपनी जरूरतें ही नहीं, दुनिया की ज़रूरतें पूरी करने में भी सक्षम होता जा रहा है। चीन हो या पश्चिम, अब सभी को भारत की ताकत का अंदाजा हो रहा है — और यही वह क्षण है जब भारत विश्व मंच पर नए नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए तैयार खड़ा है।