👋 Join Us प्रधानमंत्री मोदी का भाषाई समावेशिता पर संदेश: गुजरात से दिया कांग्रेस और भाषा राजनीति को करारा जवाब

प्रधानमंत्री मोदी का भाषाई समावेशिता पर संदेश: गुजरात से दिया कांग्रेस और भाषा राजनीति को करारा जवाब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में गुजरात की धरती से एक ऐसा संदेश दिया, जिसने न केवल देश की भाषाई विविधता को सम्मान देने की बात कही, बल्कि उन सभी राजनीतिक दलों और विचारधाराओं को करारा जवाब भी दिया जो भाषा के नाम पर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। यह भाषण खासतौर पर कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों के उस वर्ग को संबोधित करता नजर आया जो भाषा को राजनीति का हथियार बनाना चाहता है।



मोदी जी ने अपने गुजरात दौरे पर एक जनसभा को संबोधित करते हुए कुछ बेहद महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने गुजराती में कहा कि आज वे हिंदी में भाषण देंगे क्योंकि गुजरात में अन्य राज्यों के लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं और वे चाहते हैं कि उनका संदेश सभी तक पहुंचे। यह कहकर उन्होंने ना केवल हिंदी भाषा को सम्मान दिया, बल्कि यह भी दिखाया कि भाषा संवाद का माध्यम है, न कि वैमनस्य का कारण।

प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि गुजरात वह भूमि है जहां सबका स्वागत होता है, और यहां कोई भी व्यक्ति किसी भी भाषा में बोल सकता है। पब्लिक ने इस पर जोरदार समर्थन जताते हुए कहा – “ज़रूर बोल सकते हैं।” यह दृश्य यह दर्शाता है कि गुजरात जैसे राज्य में भाषाई सहिष्णुता और समावेशिता किस स्तर पर है। यह भारत की उसी भावना को दर्शाता है जिसमें ‘एकता में अनेकता’ ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।

इस बयान के जरिए प्रधानमंत्री ने अप्रत्यक्ष रूप से उन राजनीतिक दलों को आईना दिखाया जो भाषा के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिश करते हैं। खासतौर पर कांग्रेस और दक्षिण भारत के कुछ भाषा-आंदोलनकारी समूहों को यह संदेश साफ था – भारत एक ऐसा देश है जहां हर भाषा का सम्मान होता है, और इसे राजनीतिक फायदे के लिए हथियार बनाना गलत है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि भाषा का चुनाव संप्रेषण की सहजता के लिए होना चाहिए, न कि संकीर्ण राजनीति के लिए।

प्रधानमंत्री मोदी का यह भाषण केवल एक भाषाई बयान नहीं था, बल्कि यह भारत के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने की दिशा में एक निर्णायक कदम था। उनके इस बयान को The Hindu जैसे प्रतिष्ठित अखबारों ने भी जगह दी, जिसमें बताया गया कि गुजरात में वर्षों से भाषाई सह-अस्तित्व और समावेशिता की परंपरा रही है। (source)

यह बात विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषा की राजनीति अक्सर सामाजिक तनाव को जन्म देती है। ऐसे में प्रधानमंत्री का यह संदेश पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है कि हम भाषा के नाम पर नहीं बंटें, बल्कि भाषा के माध्यम से एक-दूसरे के और करीब आएं।

गुजरात से दिया गया यह भाषण न केवल भाषाई विविधता का सम्मान करने वाला था, बल्कि यह पूरे भारत को एकता का पाठ पढ़ाने वाला भी साबित हुआ। यह दर्शाता है कि भारत में हर नागरिक को हर भाषा में बोलने और समझने का अधिकार है, और सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस विविधता का सम्मान करे।

इस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल एक भाषाई बहस को सकारात्मक दिशा दी, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता को भी सशक्त बनाने का कार्य किया। उनका यह भाषण आने वाले समय में भाषा की राजनीति को नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है।