भारत बनेगा सेमीकंडक्टर का सुपरपावर: मेड-इन-इंडिया चिप से चीन को मिलेगी कड़ी टक्कर

भारत अब तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर है। सेमीकंडक्टर निर्माण के क्षेत्र में जो प्रगति हाल ही में देखने को मिली है, वह न केवल भारत की आर्थिक स्थिति को मज़बूती देगी, बल्कि वैश्विक पटल पर भी देश को नई पहचान दिलाएगी। भारत की पहली मेड-इन-इंडिया सेमीकंडक्टर चिप 2025 के अंत तक बाज़ार में उपलब्ध होगी। यह चिप 28-90 नैनोमीटर टेक्नोलॉजी पर आधारित होगी, जिसे आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे मोबाइल, कंप्यूटर, ऑटोमोबाइल और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) में उपयोग किया जाएगा।



केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस ऐतिहासिक योजना की जानकारी देते हुए कहा कि धोलेरा, गुजरात में सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन यूनिट तेजी से कार्यरत है और पहली चिप इसी साल सितंबर या अक्टूबर तक तैयार हो जाएगी। यह यूनिट टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स और ताइवानी कंपनी PSMC (Powerchip Semiconductor Manufacturing Corp) के सहयोग से स्थापित की जा रही है। सरकार ने इसके लिए 91,000 करोड़ रुपये का भारी-भरकम निवेश स्वीकृत किया है, जिससे लगभग 20,000 लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलने की संभावना है।

यह परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ विज़न का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को भविष्य की तकनीकी रीढ़ कहा जाता है, क्योंकि इन चिप्स का उपयोग लगभग हर डिजिटल डिवाइस में होता है। आज की दुनिया में मोबाइल से लेकर सैटेलाइट तक, हर चीज़ के संचालन में सेमीकंडक्टर चिप्स की भूमिका अनिवार्य है। ऐसे में भारत का इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी बेहद अहम है।

भारत सरकार ने ‘सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम’ के तहत 76,000 करोड़ रुपये की योजना को पहले ही मंज़ूरी दी है, जिसका उद्देश्य देश में सेमीकंडक्टर उत्पादन को बढ़ावा देना है। इसके तहत बेंगलुरु स्थित IISc (भारतीय विज्ञान संस्थान) को भी गैलियम नाइट्राइड (GaN) टेक्नोलॉजी पर शोध के लिए 334 करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं। यह टेक्नोलॉजी भविष्य के सेमीकंडक्टर डिवाइसेज़ के लिए बेहद अहम मानी जा रही है।

अभी तक सेमीकंडक्टर के मामले में भारत अन्य देशों, खासकर चीन और ताइवान पर निर्भर था। लेकिन अब भारत खुद चिप्स बना पाएगा, जिससे आयात पर निर्भरता घटेगी और विदेशी मुद्रा की बचत होगी। यही नहीं, यह चिप उत्पादन भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन का एक मज़बूत खिलाड़ी भी बना देगा। अमेरिका, जापान और यूरोप पहले ही भारत की इस पहल में रुचि दिखा चुके हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि आने वाले समय में भारत इस क्षेत्र में ग्लोबल हब बनने की ओर अग्रसर है।

इस चिप निर्माण से भारत को न केवल तकनीकी मजबूती मिलेगी, बल्कि यह लाखों युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी उत्पन्न करेगा। तकनीकी शिक्षा, स्टार्टअप्स और शोध के नए द्वार खुलेंगे। मेड-इन-इंडिया चिप न केवल आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार करेगी, बल्कि भारत को तकनीकी रूप से विश्व की बड़ी ताकतों में शामिल करने का मार्ग भी प्रशस्त करेगी।

निस्संदेह, सेमीकंडक्टर चिप निर्माण में यह उपलब्धि भारत को सुपरपावर बनने की दिशा में एक बड़ा और निर्णायक कदम है। आने वाले समय में जब मेड-इन-इंडिया चिप्स अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पहचान बनाएंगे, तब भारत दुनिया के तकनीकी मानचित्र पर एक नई चमक के साथ उभरेगा।