सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव अब पाकिस्तान के अंदरूनी हालात को भी अस्थिर कर रहा है। हाल ही में भारत द्वारा संधि के क्रियान्वयन को निलंबित किए जाने के बाद पाकिस्तान के सिंध प्रांत में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। सिंध में रहने वाले लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार इंडस नदी पर नए नहर परियोजनाएं बना रही है जिससे सिंध को मिलने वाला पानी कम हो जाएगा और पहले से ही जल संकट से जूझ रहे इस प्रांत की स्थिति और गंभीर हो जाएगी।
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित एक ऐतिहासिक समझौता है। इसके तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों — रावी, व्यास और सतलुज — का अधिकार दिया गया, जबकि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों — सिंधु, झेलम और चेनाब — का उपयोग करने का अधिकार मिला। इस संधि के जरिए दशकों से दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का मामला शांतिपूर्ण ढंग से चलता आ रहा था, लेकिन हाल के वर्षों में भारत की ओर से पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोपों के चलते यह संधि भी विवादों में आ गई है।
भारत ने फरवरी 2025 में जम्मू-कश्मीर के पुंछ में हुए आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को निलंबित करने का ऐलान किया। भारत का आरोप है कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों ने इस हमले को अंजाम दिया और इस मुद्दे को लेकर भारत ने सिंधु जल संधि की समीक्षा करते हुए पाकिस्तान को दी जाने वाली जल सुविधा को सीमित करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया।
इस घटनाक्रम का सीधा असर पाकिस्तान के सिंध प्रांत पर पड़ा है। सिंध प्रांत, जो पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहा है, अब केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नई नहर परियोजनाओं जैसे कि चोलिस्तान कैनाल (Cholistan Canal) के विरोध में सड़कों पर उतर आया है। सिंध के लोगों का कहना है कि ये नहरें सिंधु नदी से पानी को पंजाब और अन्य क्षेत्रों की ओर मोड़ देंगी, जिससे सिंध के खेतों, गांवों और नागरिकों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ेगा।
इन विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है। सिंध के नाओशाहरो फ़ेरोज़ ज़िले के मोरो तालुका में प्रदर्शनकारियों ने सिंध के गृह मंत्री ज़ियाउल हसन लांजार के घर को आग के हवाले कर दिया। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़पों में कई लोग घायल हुए हैं, वहीं कुछ लोगों की मौत की भी खबरें सामने आई हैं। सिंध की प्रमुख सड़कों और हाईवे को बंद कर दिया गया है, जिससे आम जनजीवन ठप हो गया है।
सिंध की राजनीतिक पार्टियों और स्थानीय नेताओं का कहना है कि पाकिस्तान की संघीय सरकार की ये योजनाएं 1991 के जल समझौते का उल्लंघन हैं। उनके अनुसार सिंध को मिलने वाला पानी पहले ही घट चुका है और अगर इन नहरों को हरी झंडी मिली तो सिंधु डेल्टा (Indus Delta) का पारिस्थितिक संतुलन पूरी तरह बिगड़ जाएगा, जिससे वहां की कृषि, मछली पालन और पीने के पानी पर गहरा संकट आ जाएगा।
विरोध की तीव्रता को देखते हुए पाकिस्तान सरकार ने फिलहाल कुछ नहर परियोजनाओं को अस्थायी रूप से रोक दिया है, लेकिन प्रदर्शनकारी स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि सरकार इन परियोजनाओं को पूरी तरह से रद्द करने का आधिकारिक आदेश जारी करे।
पाकिस्तान के जल संकट की पृष्ठभूमि में यह विवाद और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पाकिस्तान 2025 तक जल संकट से बुरी तरह प्रभावित देश बन सकता है। वहीं सिंधु नदी के जल पर निर्भर सिंध प्रांत के लिए यह संकट जीवन और मृत्यु का प्रश्न बन गया है।
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करना और पाकिस्तान में जल बंटवारे को लेकर चल रही अंदरूनी खींचतान दर्शाती है कि आने वाले समय में पानी को लेकर विवाद और बढ़ सकते हैं। भारत और पाकिस्तान दोनों को चाहिए कि वे जल संसाधनों को साझा और न्यायपूर्ण ढंग से बांटने के लिए पारदर्शी और रचनात्मक संवाद शुरू करें। साथ ही पाकिस्तान को भी अपने आंतरिक प्रांतीय विवादों को हल करने के लिए एक स्पष्ट जल नीति अपनानी होगी ताकि सिंध जैसे क्षेत्रों को न्याय मिल सके और देश में आपसी सद्भाव बना रहे।
इस जल संकट को केवल राजनीतिक मुद्दा मानकर छोड़ देना समाधान नहीं है। यह मानवीय संकट बन चुका है, जिससे लाखों लोगों की आजीविका और जीवन सीधे प्रभावित हो रहा है। आने वाले समय में जल को लेकर संघर्ष और न हो, इसके लिए आज ही उचित कदम उठाने होंगे।