चेर्नोबिल पर रूसी ड्रोन हमला और पाकिस्तान के परमाणु केंद्र पर खतरे की आशंका: क्या दुनिया नए परमाणु संकट की ओर बढ़ रही है?

हाल ही में दो बड़ी घटनाओं ने वैश्विक परमाणु सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। एक ओर, रूस द्वारा यूक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र पर किए गए ड्रोन हमले से एक बार फिर विकिरण रिसाव की आशंका गहरा गई है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के किरणा हिल्स क्षेत्र में परमाणु रिसाव की खबरें और अफवाहें फैलने लगी हैं। इन दोनों मामलों ने न केवल संबंधित देशों को, बल्कि पूरे विश्व को सतर्क कर दिया है।

14 फरवरी 2025 को एक रूसी ड्रोन ने चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र पर हमला किया। यह हमला रिएक्टर नंबर 4 के ऊपर बनाए गए ‘न्यू सेफ कंफाइनमेंट’ (NSC) पर हुआ, जो कि एक विशाल स्टील संरचना है और इसका उद्देश्य 1986 की परमाणु दुर्घटना के बाद बचा हुआ रेडियोधर्मी कचरा सुरक्षित रूप से ढकना था। रिपोर्ट के अनुसार, इस ड्रोन हमले में NSC की बाहरी स्टील की परत में करीब 15 वर्ग मीटर का छेद हो गया और अंदरूनी सुरक्षा परत का लगभग 30% हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने स्पष्ट किया कि इस हमले के बाद विकिरण स्तर में कोई खतरनाक वृद्धि नहीं हुई है और फिलहाल कोई विकिरण रिसाव नहीं पाया गया है। इसके बावजूद विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि इस संरचना की शीघ्र मरम्मत नहीं की गई, तो आने वाले दिनों में विकिरण रिसाव का गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।



चेर्नोबिल की यह घटना ऐसे समय में हुई जब दुनिया पहले से ही परमाणु सुरक्षा को लेकर आशंकित है। इसी बीच, पाकिस्तान के किरणा हिल्स क्षेत्र में एक संभावित परमाणु रिसाव को लेकर अफवाहें तेजी से फैलने लगीं। भारत द्वारा कथित रूप से किए गए एक हवाई हमले, जिसे कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में “ऑपरेशन सिंदूर” कहा गया, के बाद यह दावा किया गया कि पाकिस्तान के एक परमाणु परीक्षण स्थल पर रेडिएशन लीक हो गया है। सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो और पोस्ट्स ने इन दावों को हवा दी, जिससे अफरातफरी की स्थिति बन गई।

हालांकि, IAEA ने इन सभी अफवाहों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि पाकिस्तान के किसी भी परमाणु केंद्र से न तो कोई रेडिएशन रिसाव हुआ है और न ही किसी आपात स्थिति की पुष्टि हुई है। भारतीय वायुसेना ने भी स्पष्ट किया है कि किरणा हिल्स क्षेत्र में कोई सैन्य कार्रवाई नहीं की गई थी, और उन्होंने इस ऑपरेशन के अस्तित्व को ही नकार दिया है।

इन दोनों घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि परमाणु सुरक्षा केवल तकनीकी या आंतरिक मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह भू-राजनीतिक तनावों और गलत सूचना अभियानों से भी प्रभावित हो सकता है। चेर्नोबिल पर हमला यह दर्शाता है कि युद्धकाल में परमाणु स्थलों को भी सैन्य लक्ष्यों की सूची में शामिल किया जा सकता है, जो मानवता के लिए अत्यंत खतरनाक संकेत है। वहीं पाकिस्तान में फैली अफवाहें यह दिखाती हैं कि सूचना युद्ध भी आज के समय में परमाणु सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अब इस दिशा में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि वैश्विक परमाणु स्थलों की सुरक्षा को कैसे और अधिक मजबूत बनाया जा सकता है। साथ ही यह भी जरूरी है कि मीडिया, सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के जरिए फैलने वाली गलत जानकारी पर नियंत्रण रखा जाए और पारदर्शी संवाद को बढ़ावा दिया जाए। यह समय है जब विश्व एकजुट होकर ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सामूहिक रणनीति बनाए, ताकि भविष्य में कोई भी चेर्नोबिल या फुकुशिमा जैसी त्रासदी फिर से न दोहराई जा सके।

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