"ईरान के साथ खड़ा हुआ उत्तर कोरिया: क्या यह नया वैश्विक मोर्चा तैयार हो रहा है?"

उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन ने हाल ही में एक बेहद तीखा और स्पष्ट संदेश जारी किया है, जिसमें उन्होंने कहा है – "हम ईरान के खिलाफ किसी भी खतरे का जवाब देंगे। हम वैश्विक साम्राज्यवाद के भाड़े के सैनिकों को चेतावनी देते हैं, हम ईरान के साथ हैं।" यह बयान सिर्फ एक सामान्य राजनीतिक समर्थन नहीं है, बल्कि यह विश्व राजनीति की दिशा में संभावित बड़े बदलाव का संकेत बन सकता है। जब उत्तर कोरिया जैसे देश सार्वजनिक रूप से ईरान के समर्थन में सामने आते हैं, तो इससे यह साफ होता है कि वैश्विक ध्रुवीकरण अब और तीव्र होता जा रहा है।

उत्तर कोरिया और ईरान दोनों ही ऐसे देश हैं जो लंबे समय से पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका के विरोध में खड़े रहे हैं। दोनों पर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध भी लगे हैं और इन्हें ‘अच्छे देशों’ की श्रेणी में कभी नहीं रखा गया। लेकिन इन देशों की खास बात यह है कि वे खुद को सैन्य और राजनीतिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में हमेशा प्रयासरत रहते हैं। अब जब किम जोंग-उन ने खुलेआम यह घोषणा की है कि वे ईरान के साथ खड़े हैं, तो यह दुनिया के लिए एक नए खतरे का संकेत हो सकता है।



वर्तमान में ईरान और इजरायल के बीच लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है। इजरायल जहां अमेरिका से खुला समर्थन मांग रहा है, वहीं ईरान पर आरोप लग रहे हैं कि वह संघर्ष को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में पाकिस्तान जैसे मुस्लिम बहुल देश, ईरान के समर्थन में लामबंद होने की कोशिश कर रहे हैं। अगर यह संघर्ष मजहबी पहचान पर केंद्रित होता है, तो ईरान को जो नैतिक समर्थन अभी दुनिया के कई देशों से मिल रहा है, वह खत्म हो सकता है। भारत जैसी तटस्थ नीति अपनाने वाले देश भी इस स्थिति में एक तरफ झुकने पर मजबूर हो सकते हैं।

किम जोंग-उन का यह बयान ऐसे समय में आया है जब विश्व पहले से ही यूक्रेन-रूस युद्ध, चीन-ताइवान तनाव और वैश्विक मंदी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। ऐसे में उत्तर कोरिया और ईरान के बीच बढ़ती नजदीकी न केवल मध्य पूर्व को बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र को भी अस्थिर कर सकती है। उत्तर कोरिया के पास पहले से ही परमाणु हथियार हैं और ईरान भी इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। यदि ये दोनों देश मिलकर किसी रणनीतिक सैन्य गठबंधन की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो यह अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

इस स्थिति में भारत जैसे देश के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपनी विदेश नीति को और भी संतुलित और सतर्क बनाकर चलें। भारत की अब तक की नीति स्पष्ट रूप से किसी एक पक्ष का समर्थन करने के बजाय शांतिपूर्ण समाधान और संवाद पर आधारित रही है। लेकिन यदि विश्व दो भागों में बंटता है – एक अमेरिका के नेतृत्व वाला पश्चिमी गुट और दूसरा चीन, रूस, ईरान, उत्तर कोरिया आदि का गठबंधन – तो भारत के लिए तटस्थ रहना और कठिन हो जाएगा।

इस संपूर्ण परिदृश्य को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि किम जोंग-उन का यह बयान सिर्फ ईरान के समर्थन का संदेश नहीं, बल्कि एक नई वैश्विक धुरी के निर्माण की शुरुआत हो सकती है। यह आने वाले समय में विश्व शांति, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर गहरा असर डाल सकता है। ऐसे में यह जरूरी है कि सभी देश संयम और संवाद की नीति अपनाएं, ताकि एक और वैश्विक संघर्ष को रोका जा सके।


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