ई-रिक्शा: सस्ता, पर्यावरण-अनुकूल लेकिन कानून से बेपरवाह
बीते कुछ वर्षों में भारत के शहरी क्षेत्रों में ई-रिक्शा की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है। दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ, पटना जैसे बड़े शहरों में यह सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल सवारी का प्रमुख साधन बन गया है। हालांकि, जिस गति से इनकी संख्या बढ़ी है, उसी गति से इससे जुड़े नियमों का उल्लंघन और अव्यवस्था भी सामने आई है। चाहे बात नाबालिग चालकों की हो, ओवरलोडिंग की या अवैध चार्जिंग स्टेशनों की—हर मोर्चे पर ई-रिक्शा अब चिंता का विषय बनते जा रहे हैं।
ई-रिक्शा का मूल उद्देश्य था अंतिम मील कनेक्टिविटी (Last-Mile Connectivity) को आसान और सस्ता बनाना। लेकिन आज ये वाहन नियमों को ताक पर रखकर चलाए जा रहे हैं, जिससे दुर्घटनाएं और सार्वजनिक असुविधा बढ़ रही है।
नाबालिग ड्राइवर और बिना लाइसेंस के संचालन
ई-रिक्शा संचालन में सबसे बड़ी समस्या है ड्राइवरों की उम्र और प्रशिक्षण की। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के अनुसार, एक बड़ी संख्या में ई-रिक्शा चालक नाबालिग हैं या उनके पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है। नतीजतन, वे ट्रैफिक लाइट्स को नज़रअंदाज़ करते हैं, फुटपाथ पर चढ़ जाते हैं और अक्सर खतरनाक ड्राइविंग करते हैं। यह प्रवृत्ति दुर्घटनाओं को निमंत्रण देती है और सड़क पर चल रहे दूसरे लोगों की जान को जोखिम में डालती है।
एक रिक्शा में 6-7 सवारी: ओवरलोडिंग से जान का जोखिम
ई-रिक्शा को अधिकतम 4 यात्रियों के लिए डिजाइन किया गया है, लेकिन सड़कों पर अक्सर इनमें 6-7 यात्री बैठे नजर आते हैं। कोलकाता जैसे शहरों में तो वृद्ध महिला की ओवरलोडेड ई-रिक्शा से गिरने के बाद मौत भी हो चुकी है। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि इससे ब्रेकिंग सिस्टम और वाहन की स्थिरता पर बुरा असर पड़ता है, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
ट्रैफिक नियमों की अनदेखी बनी आदत
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, ई-रिक्शा चालकों द्वारा ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन में साल दर साल वृद्धि हो रही है। 2024 में ही इस तरह के मामलों में 53% की वृद्धि दर्ज की गई। नियमों का पालन न करना, ट्रैफिक लाइट्स को नजरअंदाज करना, गलत दिशा में चलना और सवारियों को कहीं से भी उठाना-छोड़ना अब आम बात हो गई है।
खतरनाक ड्राइविंग और घटिया निर्माण गुणवत्ता
एक और बड़ी समस्या है कि ई-रिक्शा का निर्माण कई बार अनियमित कार्यशालाओं में होता है जहाँ कोई सुरक्षा मानक नहीं अपनाए जाते। कोलकाता में कुछ ई-रिक्शा 45 किमी/घंटा की रफ्तार से चलते हैं, जो इन वाहनों की सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक है। इनकी बैलेंसिंग खराब होती है, जिससे ज़रा-सी टक्कर या मोड़ पर ये पलट सकते हैं।
अवैध चार्जिंग स्टेशन और बिजली चोरी
दिल्ली जैसे महानगरों में लगभग 60% ई-रिक्शा अवैध चार्जिंग स्टेशनों से चार्ज किए जाते हैं। ये स्टेशन अक्सर बिजली चोरी करके संचालित होते हैं, जिससे बिजली वितरण कंपनियों को सालाना ₹120 करोड़ तक का नुकसान होता है। इतना ही नहीं, इन चार्जिंग स्टेशनों पर सुरक्षा उपायों की कमी के कारण आग लगने और करंट लगने जैसी घटनाएं भी सामने आती हैं।
ई-रिक्शा से जुड़ी प्रमुख समस्याएं और आंकड़े
समस्या | विवरण |
---|---|
नाबालिग चालक | बिना लाइसेंस और ट्रैफिक नियमों की अनदेखी |
ओवरलोडिंग | 4 की जगह 6-7 सवारी, संतुलन और ब्रेकिंग सिस्टम पर असर |
ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन | 2024 में 53% वृद्धि |
घटिया निर्माण और तेज गति | असंगठित कार्यशालाओं में निर्मित, गति सीमा से अधिक चलाना |
अवैध चार्जिंग स्टेशन | 60% ई-रिक्शा अवैध चार्जिंग पर निर्भर, ₹120 करोड़ वार्षिक नुकसान |
समाधान: जिम्मेदारी किसकी?
इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए सबसे पहले सरकार और प्रशासन को सक्रिय होना होगा। ट्रैफिक पुलिस को विशेष ड्राइव चलाकर नाबालिग चालकों और बिना लाइसेंस चलने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। ई-रिक्शा को रजिस्टर करना और वैध ड्राइविंग लाइसेंस अनिवार्य बनाना चाहिए। साथ ही, अवैध चार्जिंग स्टेशनों पर ताले लगने चाहिए और बिजली चोरी करने वालों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
सरकार को अधिकृत चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना चाहिए ताकि चालकों को वैकल्पिक और सुरक्षित चार्जिंग विकल्प मिल सकें। साथ ही, जीपीएस, स्पीड लिमिटर और ट्रैकर जैसे उपकरण अनिवार्य किए जाने चाहिए ताकि ई-रिक्शा की गति और मार्ग की निगरानी की जा सके।
नागरिकों की भूमिका
केवल प्रशासन ही नहीं, आम नागरिकों की भी इसमें भूमिका है। यदि आप किसी ई-रिक्शा को ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते देखते हैं, तो ट्रैफिक हेल्पलाइन पर रिपोर्ट करें। अवैध चार्जिंग स्टेशनों की जानकारी बिजली विभाग या पुलिस को दें। खुद भी केवल उन्हीं ई-रिक्शा में यात्रा करें जो वैध और सुरक्षित हों।
निष्कर्ष
ई-रिक्शा शहरी परिवहन के क्षेत्र में एक शानदार विकल्प हो सकता है, बशर्ते वह नियमों और सुरक्षा मानकों के तहत संचालित हो। अभी की स्थिति में यह न सिर्फ ट्रैफिक अव्यवस्था, बल्कि दुर्घटनाओं और कानून व्यवस्था के लिए भी खतरा बन चुका है। ऐसे में सरकार, पुलिस प्रशासन, ई-रिक्शा चालक और आम जनता सभी को मिलकर इसके संचालन को सुरक्षित और वैध बनाना होगा।
यदि अभी से सख्ती नहीं बरती गई, तो यह सस्ता साधन एक बड़ी सामाजिक और प्रशासनिक समस्या बन जाएगा।