भारत सरकार ने अब अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्त रुख अपना लिया है। गृह मंत्रालय (MHA) ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 30 दिनों के भीतर बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों की पहचान कर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। इस कार्रवाई का उद्देश्य भारत में शरण लेने वाले विदेशी नागरिकों की पहचान कर उन्हें जल्द से जल्द उनके देश वापस भेजना है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में सख्ती दिखाते हुए कहा है कि "भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहाँ पूरी दुनिया के शरणार्थियों को बसाया जाए।"
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक की याचिका को खारिज करते हुए की, जो भारत में रहने की अनुमति चाहता था। याचिकाकर्ता ने सात साल की जेल की सजा पूरी करने के बाद भारत में बसने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि भारत की जनसंख्या पहले ही 140 करोड़ से अधिक हो चुकी है और अब यह देश और अधिक विदेशी नागरिकों को नहीं समेट सकता। कोर्ट ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि अगर हर कोई इसी तरह भारत में बसने लगे, तो देश की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाएगी।
मिजोरम सरकार ने इस दिशा में तुरंत कार्रवाई करते हुए म्यांमार से आए 33,000 से अधिक नागरिकों का बायोमेट्रिक डाटा एकत्र करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि इन लोगों की पहचान सुनिश्चित की जा सके और सरकार को इनकी स्थिति का स्पष्ट डेटा मिल सके। मिजोरम में बड़ी संख्या में म्यांमार के नागरिक 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद शरण लेने आए थे।
वहीं, राजस्थान सरकार ने भी इस दिशा में ठोस कदम उठाते हुए प्रत्येक जिले में स्पेशल टास्क फोर्स और होल्डिंग सेंटर्स स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इनका उद्देश्य जिलेवार अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों की पहचान करना और उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया को सुचारू रूप से लागू करना है। यह प्रक्रिया न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि राज्य की कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है।
गृह मंत्री अमित शाह ने भी हाल ही में स्पष्ट रूप से कहा था कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहाँ कोई भी आकर बस सकता है। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि भारत के संसाधन केवल भारतीय नागरिकों के लिए हैं और किसी भी विदेशी नागरिक को अवैध रूप से भारत में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि देश में अवैध रूप से रह रहे सभी नागरिकों की पहचान कर उन्हें जल्द ही निर्वासित किया जाएगा।
यह पूरा घटनाक्रम उस समय सामने आया है जब भारत पहले से ही विभिन्न आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा है। जनसंख्या का दबाव, रोजगार की कमी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं पर भार – इन सब परिस्थितियों में अवैध रूप से भारत में बसना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह देश के संसाधनों पर भी एक अतिरिक्त बोझ डालता है। सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार दोनों का यह संयुक्त प्रयास यह सुनिश्चित करता है कि भारत की सीमाओं की सुरक्षा और सामाजिक संतुलन को बनाए रखा जा सके।
इस कदम से यह स्पष्ट हो गया है कि अब भारत सरकार अवैध प्रवासियों के मामले में कोई नरमी नहीं बरतेगी। यह निर्णय ना केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से अहम है, बल्कि भारत के नागरिकों के हक और अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। आने वाले समय में इस दिशा में और भी कठोर कदम उठाए जा सकते हैं, जिनमें अवैध नागरिकों को भारत छोड़ने के लिए समयसीमा दी जा सकती है और जिन राज्यों ने अभी तक पहचान प्रक्रिया शुरू नहीं की है, उनके खिलाफ भी सख्त कार्यवाही की जा सकती है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख और गृह मंत्रालय की दिशा-निर्देशों को देखें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत अब अवैध रूप से आए शरणार्थियों को अपने देश में बसा कर देश की सुरक्षा और व्यवस्था से समझौता नहीं करेगा। सरकार के इस निर्णय से यह संदेश साफ है कि भारत में रहना है तो कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा, अन्यथा देश छोड़ना ही पड़ेगा।