राजस्थान के झुंझुनूं जिले से आई एक खबर ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। यह कोई साधारण आपराधिक मामला नहीं, बल्कि देशभक्ति, वीरता और अमानवीयता के बीच की एक सच्ची और दर्दनाक कहानी है। एक फौजी पिता की निर्मम हत्या और उसकी बेटी का अटूट हौसला आज हर भारतवासी को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि जब देश के रक्षक ही सुरक्षित नहीं, तो आम जनता की सुरक्षा की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
हवलदार विक्रम सिंह, भारतीय सेना के जांबाज जवान, छुट्टी पर अपने पैतृक गांव पालोटा का बास, तहसील सूरजगढ़, जिला झुंझुनूं आए थे। वे 7 जून 2025 को गांव लौटे थे और 10 जून की रात लगभग 9 बजे के आस-पास, कुछ अज्ञात हमलावरों ने उन्हें जबरन स्कॉर्पियो कार में बैठाकर गांव से बाहर ले जाकर बेरहमी से पीटा। उनके सिर, छाती और शरीर के कई हिस्सों पर सरिए और धारदार हथियारों से हमला किया गया। गंभीर हालत में उन्हें पहले स्थानीय सीएचसी अस्पताल, फिर झुंझुनूं के बीडीके अस्पताल और अंत में जयपुर रैफर किया गया, जहां उन्होंने 11 जून को दम तोड़ दिया।
इस हादसे के बाद पूरे गांव में मातम पसरा हुआ है। लेकिन इस दिल दहलाने वाले क्षण में सबसे ज्यादा ध्यान खींची उस वीर सैनिक की बेटी, जिसने अपनी आंखों से अपने पिता को खोने के बाद कहा – "अब हमारी आंखों में एक भी आंसू नहीं आएंगे। जब देश के रक्षक ही सुरक्षित नहीं हैं, तो आम लोग कैसे सुरक्षित होंगे?" यह बयान सिर्फ एक बेटी की पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है।
हवलदार विक्रम सिंह के साथ जो हुआ, वह न सिर्फ कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि समाज की उस मानसिकता को भी उजागर करता है जहां अब फौजियों तक को भी निशाना बनाया जा रहा है। सवाल यह भी उठता है कि आखिर अपराधियों के हौसले इतने बुलंद कैसे हो गए कि वे दिनदहाड़े एक सैनिक को अगवा करके जान ले सकते हैं?
झुंझुनूं हमेशा से वीरभूमि के रूप में जाना जाता रहा है। इस जिले ने देश को कई वीर सैनिक दिए हैं जिन्होंने अपने प्राण मातृभूमि के लिए न्यौछावर किए। लेकिन आज उसी झुंझुनूं की धरती पर एक सैनिक की निर्मम हत्या यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि क्या हम अपने रक्षकों की रक्षा कर पा रहे हैं?
इस मामले में पुलिस द्वारा दो संदिग्धों को हिरासत में लिया गया है, जांच भी जारी है, लेकिन जब तक इस घटना के पीछे की सच्चाई सामने नहीं आती और दोषियों को कठोर सजा नहीं मिलती, तब तक विक्रम सिंह को इंसाफ नहीं मिलेगा।
वहीं, विक्रम सिंह की पत्नी और बेटी ने भी सरकार से न्याय की मांग की है और उनके शरीर का अंतिम संस्कार तब तक करने से इनकार कर दिया जब तक कि सभी दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया जाता।
आज देश को इस दिलेर बिटिया से प्रेरणा लेने की जरूरत है। उसने न केवल अपने पिता की वीरता को आगे बढ़ाया, बल्कि यह भी दिखाया कि महिलाओं और बेटियों में कितना साहस और आत्मबल होता है।
निष्कर्षतः, हवलदार विक्रम सिंह की हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं है, यह भारत की सुरक्षा व्यवस्था, न्याय प्रणाली और सामाजिक मूल्यों पर एक कड़ा सवाल है। यह समय है जब सरकार, समाज और हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि अब किसी विक्रम सिंह की बेटी को यह न कहना पड़े कि “जब देश के रक्षक ही सुरक्षित नहीं, तो आम जनता कैसे सुरक्षित होगी?” क्योंकि एक सैनिक की हत्या सिर्फ एक इंसान का अंत नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की आत्मा पर आघात है।