कश्मीर घाटी एक बार फिर वैश्विक घटनाओं के प्रभाव में आ गई है, जहां इज़राइल और ईरान के बीच तनावपूर्ण हालात के चलते भारी विरोध-प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। कश्मीर के श्रीनगर, बडगाम, शोपियां और कर्गिल जैसे क्षेत्रों में लोगों ने सड़कों पर उतरकर इज़राइल के खिलाफ नारेबाज़ी की और ईरान के समर्थन में पोस्टर और प्लेकार्ड लहराए। इन प्रदर्शनों ने घाटी की राजनीतिक और सामाजिक संवेदनशीलता को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है।
ईरान और इज़राइल के बीच चल रहे सैन्य संघर्ष में इज़राइल द्वारा ईरान के सैन्य ठिकानों पर किए गए हमलों के जवाब में ईरान ने इज़राइल के शहर तेल अवीव को निशाना बनाया। इस हमले में कई नागरिकों की जान गई और बड़ी संख्या में घायल हुए। इस अंतरराष्ट्रीय घटना का प्रभाव भारत के जम्मू-कश्मीर में भी देखने को मिला, जहां स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने इसे अन्याय और दमन की संज्ञा दी।
कश्मीर में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान ‘Down with Israel’ और ‘Death to America’ जैसे नारे लगाए गए। प्रदर्शनकारियों ने अपने हाथों में ऐसे पोस्टर और बैनर थाम रखे थे, जिन पर ईरानी सेना और हिज़्बुल्लाह जैसे गुटों के समर्थन में संदेश लिखे थे। कई स्थानों पर युवाओं और महिलाओं ने भी भारी संख्या में भाग लिया। श्रीनगर की जामा मस्जिद और अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों पर भीड़ इकट्ठा हुई और विरोध दर्ज कराया गया।
इन विरोध प्रदर्शनों को लेकर राज्य प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया। मस्जिदों को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया और कई स्थानों पर पुलिस बल तैनात किया गया। साथ ही, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में भी लिया गया। प्रशासन का मानना है कि इस तरह की गतिविधियाँ सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकती हैं, इसलिए इन्हें समय रहते नियंत्रित करना आवश्यक है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी जैसे क्षेत्रीय दलों ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। नेताओं ने इज़राइल की कार्रवाई की आलोचना करते हुए कहा कि किसी भी देश को नागरिकों पर हमला करने का नैतिक और मानवाधिकार के आधार पर कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर के लोग हमेशा से मानवता और न्याय के पक्ष में खड़े रहे हैं और इस बार भी वे अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।
गौरतलब है कि कश्मीर पहले भी Quds दिवस या पलेस्टीन के समर्थन में प्रदर्शन करता रहा है। यह विरोध सिर्फ एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं बल्कि गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक भावना का प्रतीक भी है। लोगों की भावनाएं न केवल इस्लामिक दुनिया से जुड़ी घटनाओं के प्रति संवेदनशील हैं, बल्कि वैश्विक न्याय की भावना भी इन आंदोलनों की नींव में है।
कश्मीर में हो रहे ये प्रदर्शन एक बार फिर यह साबित करते हैं कि स्थानीय लोग वैश्विक घटनाओं से अप्रभावित नहीं हैं। वे अपनी आवाज़ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनाना चाहते हैं और अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की भावना को जीवित रखे हुए हैं। हालांकि, प्रशासन और राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि विरोध शांति और लोकतांत्रिक दायरे में ही हो ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा या सांप्रदायिक तनाव से बचा जा सके।
अंततः यह स्पष्ट है कि कश्मीर में इज़राइल और ईरान के बीच तनाव के चलते उठे यह प्रदर्शन केवल एक प्रतिक्रिया नहीं हैं, बल्कि यह लोगों की न्यायप्रियता, धार्मिक भावनाओं और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं की समझ का परिणाम हैं। सरकार को चाहिए कि वह इन भावनाओं का सम्मान करते हुए संवाद और शांति के मार्ग पर कार्य करे, जिससे घाटी में स्थिरता और सौहार्द बना रहे।