2027 से शुरू होगी भारत में जातिगत जनगणना: सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम

भारत सरकार ने 1 मार्च 2027 से देशभर में जनगणना की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की है और इस बार की जनगणना को खास बनाते हुए इसमें "जातिगत आंकड़े" भी शामिल किए जाएंगे। यह फैसला देश के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को बेहतर तरीके से समझने और योजनाओं को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए लिया गया है। इससे पहले भारत में अंतिम बार व्यापक जातिगत जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासनकाल में हुई थी। आज़ाद भारत में यह पहली बार होगा जब सभी जातियों का ब्यौरा आधिकारिक रूप से दर्ज किया जाएगा।



जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से विभिन्न सामाजिक संगठनों और क्षेत्रीय दलों द्वारा की जा रही थी। विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में जातीय आंकड़ों की अनुपलब्धता को लेकर सरकार पर सवाल उठते रहे हैं। 2021 में प्रस्तावित जनगणना कोविड महामारी के चलते स्थगित कर दी गई थी, लेकिन अब 2027 से शुरू होने वाली जनगणना के साथ यह ऐतिहासिक बदलाव देखा जाएगा।

सरकार का मानना है कि जातिगत आंकड़ों को इकट्ठा करने से समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों के लिए योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। इससे यह भी स्पष्ट हो सकेगा कि कौन से वर्ग अभी भी विकास से वंचित हैं और उनके लिए क्या विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि यह जनगणना भारत के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित होगी।

राजनीतिक दृष्टिकोण से भी यह निर्णय काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जहां एक ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस फैसले का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद किया, वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे जनता के दबाव में लिया गया निर्णय बताया है। लेकिन यह साफ है कि इस कदम से सामाजिक न्याय की दिशा में एक नई शुरुआत होने वाली है।

जातिगत जनगणना के आंकड़े शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। सरकार इन आंकड़ों के आधार पर नीतियां बनाएगी जो वंचित वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ने में सहायक होंगी। हालांकि इस प्रक्रिया को पारदर्शिता और गोपनीयता के साथ लागू करना भी उतना ही जरूरी है ताकि किसी भी जाति विशेष के साथ भेदभाव या राजनीतिक दुरुपयोग की संभावना न रहे।

अंततः यह कहा जा सकता है कि 2027 से शुरू होने वाली जनगणना केवल एक आंकड़ा संग्रहण की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह भारत की सामाजिक संरचना को गहराई से समझने और उसमें सुधार लाने का अवसर भी है। जातिगत जनगणना से न केवल सरकार को नीति निर्माण में मदद मिलेगी, बल्कि देश को सामाजिक समरसता की ओर भी एक मजबूत कदम मिलेगा।