"दूध देने वाली गाय की लात भी मंजूर है" – ममता बनर्जी का बयान और बढ़ती राजनीतिक बहस

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अक्सर अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहती हैं, लेकिन मई 2019 में दिए गए उनके एक बयान ने देशभर में सियासी बहस को नया रंग दे दिया। लोकसभा चुनाव 2019 के परिणामों के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में ममता बनर्जी ने कहा, "आप कह सकते हैं कि मैं मुसलमानों को खुश करने की कोशिश करती हूं, आप कह सकते हैं, यह आपका अधिकार है। लेकिन मैं उस गाय की लात खाने को भी तैयार हूं जो दूध देती है।"



इस बयान के आते ही राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। ममता बनर्जी का यह कथन सीधे तौर पर इस बात का संकेत था कि वे मुस्लिम समुदाय के समर्थन के लिए किसी भी आलोचना को झेलने को तैयार हैं। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाता संख्या अच्छी-खासी है और TMC का आधार काफी हद तक इस वोट बैंक पर निर्भर रहा है। विपक्ष लगातार ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाता रहा है, खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने उन्हें कट्टर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोपित किया है।



हालांकि, ममता बनर्जी ने हमेशा अपने को सर्वसमावेशी नेता बताया है और कहा है कि वह सभी धर्मों और समुदायों के बीच सौहार्द बनाकर रखना चाहती हैं। लेकिन यह बयान, जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय को "दूध देने वाली गाय" के रूप में वर्णित किया, कई मुस्लिम धार्मिक नेताओं और विद्वानों को आपत्तिजनक लगा। कुछ ने इसे "अपमानजनक" और "गैर-जरूरी तुलना" करार दिया और कहा कि किसी समुदाय को इस तरह की उपमा देना ठीक नहीं है।

बयान के राजनीतिक प्रभाव की बात करें तो यह स्पष्ट है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में TMC को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। BJP ने बंगाल में अपना प्रभाव तेज़ी से बढ़ाया और हिन्दू वोट बैंक को साधने में सफल रही। इसी संदर्भ में ममता बनर्जी का यह बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय को समर्थन देने के लिए आलोचना सहने की बात कही।

यह बयान बंगाल की राजनीति में धार्मिक ध्रुवीकरण को और गहरा करने वाला साबित हुआ। जहां एक ओर विपक्ष ने इसे "मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा" कहा, वहीं TMC समर्थकों ने इसे ममता बनर्जी की ईमानदारी और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का उदाहरण बताया।

इस प्रकरण ने यह भी दर्शाया कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में किसी भी राजनीतिक बयान का असर केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह सामाजिक संरचना, साम्प्रदायिक संतुलन और राजनीतिक समीकरणों पर भी गहरा प्रभाव डालता है।

अंततः, ममता बनर्जी का यह बयान एक ओर जहां उनके समर्थकों के लिए साहसी और स्पष्टवादी प्रतीत होता है, वहीं आलोचकों के लिए यह राजनीतिक संतुलन बिगाड़ने वाला कदम साबित हुआ है। यह साफ है कि आने वाले चुनावों में ऐसे बयानों का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में होता रहेगा और इससे बंगाल की राजनीति और अधिक जटिल होती जाएगी।