हाल ही में एक बड़ी बहस ने सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर खूब सुर्खियां बटोरी। यह बहस थी वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ गौरव सावंत के बीच, जिसमें पाकिस्तान और कश्मीर मुद्दे पर दो अलग-अलग विचारधाराएं टकराईं। यह बहस सिर्फ एक विचार-विमर्श नहीं थी, बल्कि यह उस वैचारिक संघर्ष को भी उजागर करती है जो भारत में लंबे समय से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) को लेकर चला आ रहा है।
राजदीप सरदेसाई का मानना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच स्थायी समाधान के लिए नियंत्रण रेखा (LoC) को अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए। उनका तर्क है कि यदि भारत को दक्षिण एशिया में स्थिरता लानी है, तो उसे पाकिस्तान के साथ अपने सीमा विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करना होगा। सरदेसाई ने इस दौरान पाकिस्तान की परमाणु ताकत का भी जिक्र किया और कहा कि भारत को किसी भी सैन्य निर्णय से पहले पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई की शक्ति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उनका यह दृष्टिकोण साफ तौर पर कूटनीति और शांति आधारित समाधान की ओर संकेत करता है।
लेकिन गौरव सावंत ने इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने एक तीखा जवाब देते हुए कहा कि “जो सिंदूर तक मिटा दें, उनके साथ अब कोई संवाद नहीं होना चाहिए।” उनका इशारा स्पष्ट रूप से उन आतंकी घटनाओं की ओर था, जिनमें भारत की असंख्य निर्दोष जानें गई हैं। सावंत ने कहा कि पाकिस्तान बार-बार सीज़फायर का उल्लंघन करता है, आतंकी संगठनों को समर्थन देता है और भारत के अंदरुनी मामलों में हस्तक्षेप करता है। ऐसे में POK को वापस लेना ही एकमात्र समाधान है जो भारत के गौरव और अखंडता को पुनः स्थापित करेगा।
गौरव सावंत का यह दृष्टिकोण बहुतों को भावनात्मक रूप से अधिक उचित और देशभक्ति से परिपूर्ण लगता है। उनका यह कहना कि “जब दुश्मन आपके सिंदूर पर हमला करे, तो जवाब शांति से नहीं बल्कि शक्ति से दिया जाना चाहिए,” कई नागरिकों की भावना को झकझोरता है। वहीं, राजदीप सरदेसाई की बात उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो युद्ध के बजाय बातचीत को प्राथमिकता देते हैं और मानते हैं कि भारत को अपने आर्थिक विकास और वैश्विक कूटनीतिक स्थिति को प्राथमिकता देनी चाहिए।
भारत सरकार का दृष्टिकोण पिछले कुछ वर्षों में साफ रहा है। अनुच्छेद 370 की समाप्ति और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना इस बात का संकेत है कि सरकार किसी भी प्रकार के समझौते के बजाय कड़ा रुख अपनाने को तैयार है। इसके अतिरिक्त, भारतीय सेना द्वारा “ऑपरेशन सिंदूर” जैसे अभियानों को अंजाम देना इस दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा सकता है। इससे यह संदेश साफ जाता है कि भारत अब अपने भूभाग की अखंडता से कोई समझौता नहीं करेगा।
इस पूरी बहस का सार यही है कि POK केवल एक भू-राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अस्मिता से जुड़ा हुआ सवाल है। जहां एक पक्ष शांतिपूर्ण समाधान की बात करता है, वहीं दूसरा पक्ष राष्ट्र की गरिमा और वीरता को प्राथमिकता देता है। इस तरह की बहसें यह दिखाती हैं कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है, जहां विविध विचारों का स्वागत किया जाता है, लेकिन अंत में निर्णय वही होगा जो देशहित में सर्वाधिक उचित हो।
इस विषय पर आपकी क्या राय है? क्या POK को वापस लेना चाहिए या LOC को स्थायी सीमा मान लेना चाहिए? अपनी राय हमें कमेंट में बताएं और देशभक्ति की इस बहस में भाग लें।