ऑपरेशन सिंदूर पर CDS जनरल अनिल चौहान की टिप्पणी: राजनीतिकरण से दूर रहना ही राष्ट्रहित में

भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान का हाल ही में एक विदेशी धरती पर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर दिया गया बयान सोशल मीडिया और कुछ राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। लेकिन इस पूरे मुद्दे को जिस तरह राजनीतिक रंग दिया जा रहा है, वह न केवल हमारी सेना की पेशेवर सोच को चुनौती देता है, बल्कि राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा पर भी सवाल खड़े करता है। इस ब्लॉग के माध्यम से हम समझने की कोशिश करेंगे कि जनरल चौहान ने यह बयान किन परिस्थितियों में दिया और इसे किस दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।



ऑपरेशन सिंदूर: एक रणनीतिक सफलता

ऑपरेशन सिंदूर भारत द्वारा किया गया एक अत्यंत गोपनीय और संवेदनशील सैन्य अभियान रहा है, जिसकी सफलता का संकेत खुद सरकार और वायुसेना के शीर्ष अधिकारियों द्वारा बार-बार दिया गया है। एयर मार्शल ए. के. भारती द्वारा 12 मई को दिए गए बयान में स्पष्ट किया गया था कि भारत ने इस अभियान के सभी रणनीतिक लक्ष्य पूरे कर लिए हैं और हमारे सभी पायलट सुरक्षित लौट आए हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ऐसी युद्ध जैसी स्थिति में नुकसान होना स्वाभाविक है, लेकिन समग्र दृष्टिकोण से यह ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा।

CDS का बयान: रणनीतिक सोच का प्रतीक

जनरल अनिल चौहान जैसे शीर्ष सैन्य अधिकारी का कोई भी सार्वजनिक बयान केवल शब्द नहीं होता, बल्कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सैन्य रणनीति का गहन अध्ययन और अनुभव से उपजा विचार होता है। उन्होंने जो भी कहा, वह निश्चित रूप से उन्हीं की रणनीतिक सोच और अनुभव का परिणाम है। जनरल चौहान ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर जो भी बात की, उसे किसी भावनात्मक या तात्कालिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि दीर्घकालिक राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए देखा जाना चाहिए।

यह ध्यान रखना आवश्यक है कि किसी भी सैन्य अभियान को पूरी तरह समझने के लिए उसके पीछे की रणनीति, इंटेलिजेंस इनपुट, कूटनीतिक दबाव, और ज़मीनी स्थिति का विश्लेषण करना पड़ता है। सोशल मीडिया पर इस विषय को लेकर अनुमान लगाना या बयानबाज़ी करना केवल भ्रम फैलाने का काम करता है।

राजनीतिकरण से सेना की पेशेवर छवि को नुकसान

सेना का कार्यक्षेत्र पूरी तरह पेशेवर होता है और वह किसी राजनीतिक सोच या विचारधारा से प्रेरित नहीं होता। ऐसे में CDS जैसे पद पर बैठे अधिकारी की टिप्पणी को राजनीतिक चश्मे से देखना अनुचित है। यदि ऐसे विषयों को राजनीतिक बहस का हिस्सा बना दिया जाए, तो इससे न केवल सेना की छवि को नुकसान पहुंचता है, बल्कि देश की एकता और आम जनता के विश्वास पर भी प्रभाव पड़ता है।

जनरल चौहान का बयान सैन्य पेशेवर दृष्टिकोण का हिस्सा था, जिसे किसी राजनीतिक बयानबाज़ी या आरोप-प्रत्यारोप के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह समझना बेहद ज़रूरी है कि हमारी सेना हर परिस्थिति में राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखकर निर्णय लेती है।

सरकार की भूमिका और पारदर्शिता की ज़रूरत

हालांकि सरकार की ओर से पहले ही यह स्पष्ट किया जा चुका है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है और इसकी प्रक्रिया अभी जारी है। ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करे जो ऑपरेशन सिंदूर की व्यापक समीक्षा कर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करे।

इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर प्रस्तुत किया जाना चाहिए, ताकि देश की जनता को इस अभियान की सफलता, रणनीति और चुनौतियों की सटीक जानकारी मिल सके। हां, इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील पहलुओं को गोपनीय रखा जाना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की रणनीतिक जानकारी दुश्मन तक न पहुंचे।

स्वतंत्र टिप्पणी से परहेज क्यों ज़रूरी है?

जब तक ऑपरेशन सिंदूर की अधिकारिक रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हो जाती, तब तक किसी भी अधिकारी द्वारा इस अभियान से जुड़ी कोई भी स्वतंत्र टिप्पणी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोखिमपूर्ण हो सकती है। चाहे वह बयान देश के भीतर हो या किसी विदेशी मंच पर, उससे जुड़े हर शब्द का विश्लेषण किया जाता है।

इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि सैन्य अधिकारियों को बयान देने से पूर्व इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी कही गई बात को कैसे परखा जा सकता है और किस प्रकार उसका राजनीतिक या अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में दुरुपयोग किया जा सकता है। वहीं, आम नागरिकों और नेताओं को भी यह समझना चाहिए कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर विषयों पर टिप्पणी करते समय गंभीरता और संवेदनशीलता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।

निष्कर्ष: समझदारी और एकता की ज़रूरत

CDS जनरल अनिल चौहान के बयान को लेकर जो भी विवाद खड़ा किया जा रहा है, उसे तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए। यह वक्त सेना के साथ खड़े होने का है, न कि उनके निर्णयों को सार्वजनिक बहस में लाकर कटघरे में खड़ा करने का।

सैन्य निर्णय हमेशा समय, स्थिति और रणनीतिक ज़रूरतों के आधार पर लिए जाते हैं, जिनकी पूरी जानकारी केवल सीमित और अधिकृत अधिकारियों को होती है। ऐसे में सोशल मीडिया या राजनीतिक मंचों पर किसी भी तरह की असंवेदनशील टिप्पणी न केवल सेना के मनोबल को प्रभावित करती है, बल्कि देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचा सकती है।

हम सभी की सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि हम अपने सशस्त्र बलों पर भरोसा करें और उनकी पेशेवर सोच का सम्मान करें। सरकार को चाहिए कि वह समय रहते ऑपरेशन सिंदूर पर पारदर्शी और संतुलित जानकारी संसद और जनता के समक्ष रखे, ताकि अटकलों और अफवाहों को रोका जा सके।