पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ का हालिया बयान एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूंजती हुई सच्चाई को उजागर करता है, जिसने देश की छवि को और भी कमजोर कर दिया है। शरीफ ने खुद स्वीकार किया है कि पाकिस्तान के मित्र राष्ट्र जैसे कि चीन, सऊदी अरब, तुर्की, कतर और यूएई अब इस देश से तंग आ चुके हैं, जो बार-बार वित्तीय मदद मांगता रहता है। यह बयान न केवल पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि देश की विदेशी नीति और कूटनीतिक संबंध अब किस हद तक प्रभावित हो चुके हैं।
शहबाज़ शरीफ ने सबसे पहले इस दर्दनाक सच्चाई को 14 सितंबर 2022 को इस्लामाबाद में एक वकील सम्मेलन के दौरान उजागर किया था, जब उन्होंने कहा था कि आज जब भी पाकिस्तान किसी मित्र देश को फोन करता है या मुलाकात करता है, तो वहां यह धारणा बन चुकी है कि पाकिस्तान फिर से मदद मांगने आया है। यह बयान मीडिया और आम जनता के बीच व्यापक चर्चा का विषय बन गया था क्योंकि यह स्वीकारोक्ति पाकिस्तान की गिरती आर्थिक साख की ओर इशारा कर रही थी।
इसके बाद 2024 में, जब शहबाज़ शरीफ संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर थे, तब उन्होंने एक और साहसिक बयान दिया जिसने फिर से सुर्खियाँ बटोरीं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, "अब वह दौर चला गया जब मैं भाईचारे के नाम पर कटोरा लेकर देशों के पास जाया करता था। मैंने वह कटोरा तोड़ दिया है।" इस कथन के माध्यम से शरीफ ने यह संदेश देने की कोशिश की कि अब पाकिस्तान भीख नहीं मांगेगा, बल्कि निवेश और आपसी सहयोग के लिए प्रयास करेगा।
हालाँकि, यह बयान उस समय आया जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विदेशी कर्ज़ों और IMF की शर्तों के दबाव में जूझ रही है। देश की मुद्रा लगातार गिर रही है, महंगाई चरम पर है और विदेशी मुद्रा भंडार संकट में है। ऐसे में शहबाज़ शरीफ का यह बयान एक 'डैमेज कंट्रोल' की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है, जिससे देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को संभाला जा सके।
मजेदार बात यह है कि सोशल मीडिया और कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया कि शहबाज़ शरीफ ने यह बयान सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की उपस्थिति में दिया। हालांकि, इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है और न ही मीडिया रिपोर्ट्स में इस बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख है। लेकिन फिर भी, प्रधानमंत्री की यह स्वीकारोक्ति अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के लिए एक शर्मनाक क्षण जरूर बन गया है।
शहबाज़ शरीफ का यह बयान पाकिस्तान के लिए एक आत्ममंथन का अवसर है। यह स्पष्ट करता है कि अब देश को अपनी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना होगा, केवल कर्ज और मदद के सहारे नहीं चला जा सकता। अगर पाकिस्तान को वाकई अपने अंतरराष्ट्रीय संबंध सुधारने हैं और एक मजबूत राष्ट्र बनना है, तो उसे 'भिक्षा नीति' को त्याग कर विकास और उत्पादन की ओर बढ़ना होगा। तभी देश अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा और आत्मनिर्भरता को पुनः प्राप्त कर सकेगा।