पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। हाल ही में 22 वर्षीय लॉ छात्रा और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनौली की गिरफ्तारी ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। कोलकाता पुलिस ने उन्हें 1,500 किलोमीटर दूर गुड़गांव (हरियाणा) से गिरफ्तार किया, जबकि उन्हीं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने वाले वजाहत खान के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। इस दोहरे मापदंड को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या राज्य में कानून सभी के लिए समान है या फिर राजनीतिक और वैचारिक प्रतिबद्धताओं के आधार पर कार्रवाई की जाती है?
शर्मिष्ठा पनौली पर आरोप है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के खिलाफ एक विवादास्पद वीडियो पोस्ट किया था, जिसे बाद में उन्होंने डिलीट कर माफी भी मांग ली थी। इसके बावजूद, पश्चिम बंगाल की कोलकाता पुलिस ने उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर, बिना किसी समन या पूर्व सूचना के उन्हें हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया। यह कार्रवाई न केवल संवैधानिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठाती है, बल्कि इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर सीधा हमला भी माना जा रहा है।
इस मामले में सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि वजाहत खान, जिनकी शिकायत पर शर्मिष्ठा को गिरफ्तार किया गया, उनके खिलाफ भी सोशल मीडिया पर देशद्रोही और आपत्तिजनक टिप्पणियों का आरोप है। इसके बावजूद बंगाल पुलिस ने उनके खिलाफ न तो कोई गिरफ्तारी की है और न ही उन्हें पूछताछ के लिए तलब किया गया है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि कानून का पालन करते समय समानता का सिद्धांत नजरअंदाज किया जा रहा है।
इस गिरफ्तारी के बाद अभिनेत्री रूपाली गांगुली, कंगना रनौत, और आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण समेत कई प्रमुख हस्तियों ने शर्मिष्ठा के पक्ष में आवाज उठाई है। राष्ट्रीय महिला आयोग और बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी इस कार्रवाई को गलत ठहराते हुए उनकी तत्काल रिहाई की मांग की है। इन सभी प्रतिक्रियाओं से यह साफ जाहिर होता है कि यह मामला केवल एक गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि लोकतंत्र में नागरिकों के अधिकारों और पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वाला बन गया है।
यदि पुलिस किसी को देश के एक कोने से बिना समन और ठोस प्रक्रिया के गिरफ्तार कर सकती है, तो क्या यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरे की घंटी नहीं है? और जब वही पुलिस शिकायतकर्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती, तो यह दर्शाता है कि कानून का इस्तेमाल पक्षपातपूर्ण तरीके से हो रहा है।
इस पूरे मामले ने पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह जरूरी है कि इस प्रकरण की न्यायिक समीक्षा हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि कानून का पालन समान रूप से सभी पर हो, न कि राजनीतिक या वैचारिक आधार पर। तभी लोकतंत्र में आम नागरिक का विश्वास बहाल रह सकेगा।