गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के पाटडी कस्बे में स्थित सरकारी अस्पताल से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिसने न केवल स्थानीय लोगों को झकझोर दिया है, बल्कि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बताया जा रहा है कि इस सरकारी अस्पताल में एक मरीज को इलाज के लिए लाया गया, लेकिन मौके पर डॉक्टर मौजूद नहीं थे। समय पर इलाज न मिलने के कारण मरीज ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया। यह घटना एक बार फिर सरकारी अस्पतालों की लचर व्यवस्था और गैर जिम्मेदाराना रवैये को उजागर करती है।
घटना की शुरुआत तब हुई जब मरीज को तेज़ बेचैनी और स्वास्थ्य बिगड़ने की शिकायत के बाद पाटडी अस्पताल लाया गया। परिजनों को उम्मीद थी कि सरकारी अस्पताल में त्वरित इलाज मिलेगा और मरीज को राहत मिलेगी। लेकिन अस्पताल पहुंचते ही उन्हें पता चला कि वहां कोई डॉक्टर मौजूद नहीं है। नर्सिंग स्टाफ द्वारा मरीज को कुछ दवाएं और एक इंजेक्शन दिया गया, लेकिन इसी दौरान मरीज को दिल का दौरा पड़ा और कुछ ही मिनटों में उसकी मौत हो गई। परिजनों ने जब अस्पताल प्रशासन से जवाब मांगा तो किसी ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया।
इस घटना से स्वाभाविक रूप से स्थानीय जनता में भारी रोष है। लोगों का कहना है कि जब सरकार करोड़ों रुपये स्वास्थ्य बजट में खर्च करने का दावा करती है, तब ऐसे सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की गैरहाज़िरी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव क्यों है? यदि उस समय डॉक्टर अस्पताल में होते और उचित इलाज मिलता, तो शायद उस व्यक्ति की जान बचाई जा सकती थी।
यह कोई पहली बार नहीं है जब सरकारी अस्पतालों की इस तरह की लापरवाही सामने आई हो। पहले भी गुजरात समेत देश के कई हिस्सों में डॉक्टरों की अनुपस्थिति, इलाज में देरी और प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण मरीजों की जान जा चुकी है। लेकिन हर बार प्रशासन आश्वासन देकर मामले को शांत करता है और कुछ ही समय बाद सब कुछ भुला दिया जाता है।
अब सवाल उठता है कि क्या सरकार और स्वास्थ्य विभाग इस घटना से सबक लेंगे? क्या ऐसी मौतों की जवाबदेही तय की जाएगी? क्या ऐसे अस्पतालों में 24 घंटे डॉक्टरों की उपस्थिति सुनिश्चित की जाएगी, ताकि फिर किसी गरीब को इस तरह बिना इलाज के जान न गंवानी पड़े?
इस घटना ने यह भी दिखा दिया है कि आम जनता की ज़िंदगी आज भी सरकारी व्यवस्थाओं की दया पर निर्भर है। जब तक डॉक्टरों की उपस्थिति, सुविधाओं की उपलब्धता और प्रशासनिक निगरानी सुनिश्चित नहीं की जाती, तब तक आम आदमी का जीवन असुरक्षित ही रहेगा।
गुजरात जैसे विकसित राज्य में इस तरह की घटनाएं न केवल शर्मनाक हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं किस हद तक उपेक्षित हैं। सरकार को इस दिशा में तुरंत कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं दोबारा न हों और जनता का विश्वास स्वास्थ्य प्रणाली पर बना रहे।