हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण हालातों के दौरान दुनिया के सामने एक बड़ा सच उजागर हुआ है। पाकिस्तान ने खुद यह स्वीकार किया है कि उसने संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका से संघर्षविराम (Ceasefire) की मांग की थी। यह वही पाकिस्तान है जो अक्सर भारत पर युद्धोन्माद फैलाने का आरोप लगाता है। लेकिन इस बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान का चेहरा खुद उसकी ही सरकार के मंत्रियों ने बेनकाब कर दिया।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने वॉशिंगटन में दिए गए एक बयान में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि पाकिस्तान भारत के साथ बातचीत को लेकर खुला है, लेकिन उसे कोई जल्दबाज़ी नहीं है। हालांकि इसी बातचीत के दौरान उन्होंने यह भी माना कि पाकिस्तान ने संघर्षविराम के लिए अमेरिका से मध्यस्थता की गुहार लगाई थी। यह कबूलनामा साफ तौर पर इस बात का प्रमाण है कि भारत की रणनीतिक और सैन्य ताकत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।
भारत की ओर से ऑपरेशन सिंदूर के दौरान की गई सैन्य कार्रवाई ने पाकिस्तान को बुरी तरह से हिला कर रख दिया था। भारतीय सेना की त्वरित कार्रवाई और मजबूती से जवाब देने के कारण पाकिस्तान की ओर से रची गई 48 घंटे में भारत को कमजोर करने की योजना महज 8 घंटे में ही धराशायी हो गई। यह बात खुद भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने एक आधिकारिक बयान में कही है। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान की मंशा भारत को दबाने की थी, लेकिन भारतीय सेना की निर्णायक रणनीति ने उनके मंसूबों को चकनाचूर कर दिया।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के बीच में संघर्षविराम की ‘भीख’ मांगी थी। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह अभियान अभी खत्म नहीं हुआ है। इसका अर्थ यह है कि भारत अब आतंकवाद और सीमा पर हो रहे उल्लंघनों को लेकर बिल्कुल भी नरमी नहीं दिखाने वाला है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम की पुष्टि की है और इसे एक सकारात्मक कदम बताया है। लेकिन असल में अगर गौर किया जाए तो यह संघर्षविराम भारत की मांग पर नहीं, बल्कि पाकिस्तान की तरफ से दबाव में लिया गया फैसला था।
राहुल गांधी और पवन खेड़ा जैसे विपक्षी नेताओं को यह बात समझ लेनी चाहिए कि भारत की विदेश नीति और सैन्य रणनीति अब किसी मध्यस्थता पर नहीं बल्कि आत्मनिर्भर और निर्णायक फैसलों पर आधारित है। पाकिस्तान की यह स्वीकारोक्ति इस बात का प्रमाण है कि भारत अब पहले की तरह नहीं रहा और कोई भी दुस्साहसिक कदम उठाने वालों को माकूल जवाब दिया जाएगा।
इस घटना ने न सिर्फ पाकिस्तान की पोल खोली है, बल्कि यह भी दिखाया है कि भारत की कूटनीति अब वैश्विक मंच पर कहीं अधिक प्रभावशाली और सशक्त है।