थरूर ने राहुल गांधी और डोनाल्ड ट्रंप दोनों के 'मध्यस्थता' दावे को किया खारिज – कांग्रेस में मतभेद उजागर

भारत की राजनीति में हाल ही में एक बड़ा खुलासा तब हुआ जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में बैठकर राहुल गांधी के उस बयान को सिरे से खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम के पीछे अमेरिकी मध्यस्थता, विशेषकर डोनाल्ड ट्रंप का हाथ था। इस बयान ने सिर्फ राहुल गांधी की नहीं बल्कि खुद डोनाल्ड ट्रंप की भी सार्वजनिक रूप से किरकिरी करा दी।

शशि थरूर ने साफ तौर पर कहा कि भारत ने कभी किसी तीसरे देश से — ना अमेरिका से, ना किसी अन्य राष्ट्र से — मध्यस्थता की मांग की थी। उनका कहना था कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ संघर्ष विराम पूरी तरह दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के आपसी समन्वय और बातचीत का परिणाम था, न कि किसी बाहरी दबाव का। थरूर के अनुसार यह पूरी प्रक्रिया द्विपक्षीय संवाद पर आधारित थी और इसमें अमेरिका या किसी तीसरे पक्ष की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं थी।


यह बयान ऐसे समय आया है जब राहुल गांधी अपने अमेरिकी दौरे पर विभिन्न विश्वविद्यालयों और संगठनों में भाषण दे रहे थे और भारत की वर्तमान सरकार की विदेश नीति की आलोचना कर रहे थे। उन्होंने अपने भाषण में ट्रंप की मध्यस्थता को लेकर दावा किया था कि मोदी सरकार ने अमेरिकी दबाव में आकर पाकिस्तान के साथ समझौता किया था। परंतु थरूर ने इस बात को “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए स्पष्ट किया कि ऐसा कोई औपचारिक आग्रह भारत की ओर से कभी नहीं किया गया।



शशि थरूर ने यह भी बताया कि अगर किसी देश के प्रतिनिधि दूसरे देश से बातचीत करते हैं और उसके नतीजे में कुछ प्रभाव आता है, तो उसे औपचारिक मध्यस्थता नहीं कहा जा सकता। उनके अनुसार यह एक सामान्य कूटनीतिक संवाद होता है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नियमित प्रक्रिया है। थरूर के इस बयान ने जहां कांग्रेस पार्टी की विदेश नीति पर समझ को साफ किया, वहीं पार्टी के भीतर मतभेदों को भी उजागर कर दिया।

कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने तुरंत प्रतिक्रिया दी कि शशि थरूर का यह बयान उनकी निजी राय है और पार्टी की आधिकारिक स्थिति नहीं है। इससे साफ होता है कि पार्टी में नेतृत्व और नीति को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।

इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस पार्टी को असहज स्थिति में डाल दिया है, जहां एक ओर राहुल गांधी अमेरिका में मोदी सरकार पर निशाना साध रहे हैं, वहीं उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ नेता उनके बयान को खारिज कर रहे हैं। इससे कांग्रेस की एकजुटता और विश्वसनीयता दोनों पर सवाल खड़े होते हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर पार्टी को अपने रुख को स्पष्ट और एकजुट रखना चाहिए, नहीं तो इसका लाभ सत्तारूढ़ दल को सीधे तौर पर मिलता है।

शशि थरूर के इस स्पष्टीकरण ने भारत की विदेश नीति की गंभीरता और आत्मनिर्भरता को दर्शाया है, जबकि राहुल गांधी के बयान ने न केवल कांग्रेस की छवि को धक्का पहुंचाया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि विदेशी मंचों पर बोलने से पहले तथ्यों की पुष्टि कितनी आवश्यक होती है।