पहलगाम आतंकी हमला: क्या प्रधानमंत्री और गृह मंत्री लेंगे जवाबदेही? उठ रहे हैं तीखे सवाल

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत हो गई, जिनमें बड़ी संख्या में पर्यटक और स्थानीय नागरिक शामिल थे। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली है, जो लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ है।



लेकिन इस हमले से जुड़ा एक और बड़ा पहलू अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है। यह दावा किया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कश्मीर दौरा हमले से तीन दिन पहले सुरक्षा कारणों से रद्द कर दिया गया था। विपक्षी नेताओं का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री को पहले से खुफिया जानकारी थी, तो फिर आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए गए? क्या यह नहीं दर्शाता कि गृह मंत्रालय के पास पहले से इनपुट थे, लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया?



कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि अगर प्रधानमंत्री को हमले से पहले खुफिया इनपुट मिले थे, तो फिर नागरिकों की सुरक्षा क्यों नहीं सुनिश्चित की गई? उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अब प्रधानमंत्री मोदी गृह मंत्री अमित शाह से इस्तीफा लेंगे और इस चूक की नैतिक जिम्मेदारी तय करेंगे?

इस बीच सरकार ने प्रतिक्रिया स्वरूप ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में आतंकियों के ठिकानों को निशाना बनाकर जवाबी कार्रवाई की। इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के अंदर कई आतंकी ठिकानों पर सटीक बमबारी की और नौ विमान, कई ड्रोन और मिसाइल लॉन्चर नष्ट किए। यह कार्रवाई सैन्य दृष्टि से सफल मानी गई, लेकिन विपक्ष का तर्क है कि यह प्रतिक्रिया बाद में दी गई, जबकि खतरे को पहले से ही टाला जा सकता था।

इस पूरे मामले पर तृणमूल कांग्रेस (TMC) और शिवसेना (UBT) ने भी केंद्र सरकार पर हमला बोला है। TMC ने सीधे तौर पर गृह मंत्री अमित शाह से इस्तीफे की मांग की है, जबकि शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल में जवाबदेही को महत्व देते हैं, तो उन्हें शाह से इस्तीफा लेना चाहिए। उनका कहना है कि एक ऐसे हमले के लिए, जो खुफिया अलर्ट के बावजूद नहीं रोका जा सका, गृहमंत्री को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जम्मू-कश्मीर इस समय केंद्र शासित प्रदेश है और वहां की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी भारत सरकार के गृह मंत्रालय की है। ऐसे में इस तरह का आतंकी हमला और वह भी पर्यटन क्षेत्र में, सरकार की खुफिया और सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करता है।

बात केवल जवाबी कार्रवाई की नहीं है, बल्कि नागरिकों की सुरक्षा में लापरवाही की है। विपक्ष का सवाल यह है कि क्या सरकार केवल कार्रवाई के बाद दिखावा करती है, या फिर वास्तविक रूप से आम जनता की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है? और सबसे अहम सवाल यह है कि अगर एक प्रधानमंत्री को खतरे की सूचना के आधार पर दौरा रद्द करना पड़ता है, तो फिर बाकी नागरिकों की जान क्यों खतरे में डाल दी जाती है?

देश इस समय सवालों के घेरे में है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इस हमले की नैतिक जिम्मेदारी लेंगे? क्या भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए कोई ठोस रणनीति बनेगी? या फिर यह भी एक राजनीतिक बहस बनकर रह जाएगी?

इस समय देश को जवाब चाहिए—एक स्पष्ट और जिम्मेदार नेतृत्व की जरूरत है जो सिर्फ जवाबी कार्रवाई न करे, बल्कि पूर्व तैयारी और नागरिक सुरक्षा को प्राथमिकता दे। क्योंकि देश की जनता सिर्फ सैन्य पराक्रम नहीं, सुरक्षा की गारंटी चाहती है।