राजस्थान के सूरतगढ़ क्षेत्र में एक नया राजनीतिक और सामाजिक विवाद उस समय सामने आया जब कांग्रेस विधायक डूंगर राम गेदर ने मानकसर गांव के एक स्कूल की बच्चों के खेलने की ज़मीन को वक्फ बोर्ड को देने की मांग की। यह मांग उन्होंने उपखंड अधिकारी (SDO) से मिलकर की, जिसमें उनके साथ सूरतगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम मोहम्मद पठान समेत कांग्रेस के कई स्थानीय नेता मौजूद थे।
इस ज़मीन पर वर्तमान में एक सरकारी स्कूल स्थित है और इसका उपयोग बच्चे खेलकूद और अन्य बाह्य गतिविधियों के लिए करते हैं। इस तरह की ज़मीन बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक मानी जाती है। ऐसे में इस ज़मीन को वक्फ बोर्ड को सौंपने की मांग ने स्थानीय लोगों में आक्रोश और चिंता दोनों पैदा कर दिए हैं।
वक्फ बोर्ड, जो कि इस्लामी धार्मिक और परोपकारी संपत्तियों का प्रशासन करता है, भारत में लाखों एकड़ ज़मीन का मालिक है। हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट्स के अनुसार, वक्फ बोर्ड के पास लगभग 9.4 लाख एकड़ भूमि है, जो इसे देश के सबसे बड़े गैर-सरकारी ज़मीन मालिकों में से एक बनाती है। हालांकि इसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के हित में कार्य करना होता है, लेकिन जब यह सार्वजनिक और शैक्षणिक संस्थानों की ज़मीन पर दावा करता है तो विवाद पैदा होना स्वाभाविक है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बच्चों की खेलने की ज़मीन पहले ही सीमित है और उसे किसी भी धार्मिक संस्था को सौंपना शिक्षा और बच्चों के भविष्य के साथ अन्याय होगा। अभिभावकों और शिक्षकों ने इस मांग का विरोध करते हुए इसे जनविरोधी कदम बताया है। वहीं, कुछ लोग इसे “वोट बैंक” की राजनीति से प्रेरित कदम मानते हैं।
यह कोई पहला मामला नहीं है जब वक्फ बोर्ड ने किसी शैक्षणिक संस्थान या सार्वजनिक ज़मीन पर दावा किया हो। देश के कई राज्यों में पहले भी ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें वक्फ बोर्ड द्वारा स्कूल, अस्पताल या रेलवे की ज़मीन पर स्वामित्व का दावा किया गया हो। इससे सार्वजनिक सेवाओं पर असर पड़ता है और समाज में तनाव भी उत्पन्न होता है।
अब इस मामले में प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्हें एक ऐसा निर्णय लेना होगा जो न केवल बच्चों के हितों की रक्षा करे, बल्कि सामाजिक सद्भाव भी बनाए रखे। ज़रूरत है कि ऐसे मामलों में पारदर्शिता और जनसंवाद को प्राथमिकता दी जाए ताकि भविष्य में कोई भी फैसला स्थानीय जनता के विश्वास और भलाई के साथ समझौता न करे।
इस विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सार्वजनिक संसाधनों का धार्मिक या राजनीतिक हितों के लिए प्रयोग गंभीर सवाल खड़े करता है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों और प्रशासन को संवेदनशीलता के साथ निर्णय लेना होगा ताकि समाज में संतुलन और समानता बनी रहे।