योगी सरकार बनाम BJP अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष: सालार गाजी मेले को लेकर उठा सियासी बवाल

उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। इस बार विवाद का केंद्र बना है बहराइच का सालार गाजी मेला और भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी का बयान। योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस वर्ष बहराइच में लगने वाले ऐतिहासिक सालार गाजी मेले पर रोक लगा दी, जिसे लेकर पार्टी के भीतर ही असहमति की स्थिति देखने को मिली। इस फैसले का विरोध करते हुए जमाल सिद्दीकी न केवल बहराइच पहुंचे, बल्कि सालार गाजी की दरगाह पर चादर भी चढ़ाई और बयान दिया कि “योगी जी का मत अपनी जगह है, लेकिन मेरे लिए गाजी बाबा संत हैं, सिद्ध पुरुष हैं।” उनके इस बयान ने प्रदेश में सियासी हलचल पैदा कर दी है और भाजपा के भीतर मतभेदों को सार्वजनिक कर दिया है।



सैयद सालार मसूद गाजी, जिन्हें गाजी मियां भी कहा जाता है, 11वीं सदी के एक मुस्लिम योद्धा माने जाते हैं। ऐतिहासिक रूप से यह कहा जाता है कि वह महमूद गजनवी के रिश्तेदार थे और उत्तर भारत में इस्लाम के प्रसार के लिए आए थे। इतिहासकारों के एक वर्ग के अनुसार, वह एक आक्रमणकारी थे जिन्होंने स्थानीय हिंदू राजाओं से युद्ध किया। वहीं दूसरी ओर, कुछ लोगों की मान्यता है कि वे एक सूफी संत थे जिनकी दरगाह पर आज भी हिंदू और मुस्लिम श्रद्धालु समान श्रद्धा से आते हैं। बहराइच में स्थित उनकी दरगाह पर हर साल एक विशाल मेला लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग भाग लेते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इसे लेकर राजनीतिक और धार्मिक विवाद गहराते जा रहे हैं।

योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस बार सालार गाजी मेले को लेकर सख्ती दिखाई और इसे आयोजन की अनुमति नहीं दी। इस फैसले के पीछे सरकार की मंशा यह बताई जा रही है कि वह उत्तर प्रदेश में किसी ऐसे व्यक्ति को महिमामंडित नहीं करना चाहती, जिसे ऐतिहासिक रूप से एक आक्रमणकारी माना जाता है। भाजपा का एक वर्ग यह मानता है कि गाजी मियां को महापुरुष या संत के रूप में पूजना गलत इतिहास बोध है। वहीं, पार्टी के ही अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने इस फैसले का खुलकर विरोध किया है।

जमाल सिद्दीकी के बयानों से साफ है कि भाजपा के अंदर इस मुद्दे पर मतभेद मौजूद हैं। उनका कहना है कि गाजी बाबा उनके लिए एक सिद्ध पुरुष हैं, और योगी सरकार का निर्णय उनके विश्वास को नहीं बदल सकता। उन्होंने बहराइच जाकर चादर चढ़ाकर यह संदेश दिया कि अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को सम्मान मिलना चाहिए। उनके इस कदम को लेकर भाजपा के कई नेताओं ने नाराजगी जताई है और यह सवाल उठाया है कि क्या पार्टी के नेता सार्वजनिक रूप से सरकार के फैसले का विरोध कर सकते हैं।

इस पूरे घटनाक्रम ने यूपी की राजनीति में नई बहस को जन्म दे दिया है। विपक्षी पार्टियों को भी सरकार को घेरने का एक मौका मिल गया है। समाजवादी पार्टी के नेता यासर शाह ने कहा कि यह फैसला धार्मिक सौहार्द के खिलाफ है और लोगों की आस्था पर चोट है। वहीं ओम प्रकाश राजभर ने सालार गाजी के इतिहास को लेकर बयान देते हुए कहा कि यह मेला महाराजा सुहेलदेव के सम्मान में लगना चाहिए, जिन्होंने गाजी मियां को युद्ध में हराया था।

यह विवाद न केवल इतिहास और धर्म को लेकर है, बल्कि भाजपा के आंतरिक संतुलन और साम्प्रदायिक समावेश की नीति पर भी सवाल खड़ा करता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आने वाले समय में इस मसले पर किस प्रकार की स्पष्टता देती है और क्या पार्टी के भीतर विचारधारात्मक मतभेदों को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने वालों पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई होती है।

इस पूरी घटना से यह साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश में धार्मिक आस्थाओं, ऐतिहासिक व्याख्याओं और राजनीतिक नीतियों का टकराव एक जटिल और संवेदनशील मसला बन चुका है, जिसका समाधान केवल संवाद और संतुलित दृष्टिकोण से ही संभव है।