सूरत की ग़रीबी में छिपा कलाकार: राजू की आवाज़ को चाहिए सही मंच और सम्मान

गुजरात के सूरत शहर में रहने वाले राजू की कहानी उन अनसुने कलाकारों की प्रतिनिधि बन गई है, जिनके पास हुनर तो है, लेकिन उन्हें न तो सही मंच मिलता है और न ही समाज से वह पहचान, जिसके वे हकदार हैं। राजू के पास न केवल बेहतरीन गायकी की कला है, बल्कि एक ऐसी आवाज़ है जो लोगों की आत्मा को छू जाती है। वह सादगी में रहकर भी सुरों से समृद्ध है, और उसकी प्रतिभा उसे एक नई दिशा देने के लिए काफी है।



राजू एक सामान्य परिवार से है और ग़रीबी के माहौल में बड़ा हुआ है। लेकिन उसकी मेहनत और संगीत के प्रति लगाव कभी कमजोर नहीं पड़ा। वह बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के, अपने दम पर ऐसी आवाज़ लेकर सामने आया है जो किसी भी बड़े मंच पर तालियां बटोर सकती है। आज जब सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म हैं, तब भी कई प्रतिभाएं ऐसे कोनों में दबी रह जाती हैं जहाँ तक इन प्लेटफार्म्स की पहुंच नहीं होती। राजू उन्हीं में से एक है।

राजू की कला केवल मनोरंजन नहीं है, यह उसके जीवन का आधार है, उसकी पहचान है। उसकी मेहनत और लगन को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। एक ऐसा युवा जो रोज़ अपनी ग़रीबी से लड़ते हुए अपने सपनों को जिंदा रखे हुए है, वह समाज के लिए एक प्रेरणा बन सकता है। ऐसे कलाकारों को जब उचित मंच मिलता है, तो वे न केवल खुद का जीवन बदलते हैं, बल्कि हजारों युवाओं के लिए उम्मीद की मिसाल बनते हैं।

सरकार और समाज को मिलकर ऐसे उभरते हुए कलाकारों को सहयोग देने की ज़रूरत है। चाहे वह उन्हें लोकल आयोजनों में अवसर देना हो या फिर उन्हें सरकारी कला योजनाओं से जोड़ना—ऐसे कदम इन गुमनाम सितारों को रोशनी में लाने का काम कर सकते हैं।

राजू की आवाज़ आज सूरत की गलियों तक सीमित है, लेकिन अगर उसे अवसर मिले, तो वह देश और दुनिया में भारत की प्रतिभा का प्रतिनिधित्व कर सकता है। उसकी कला को वह सम्मान मिलना ही चाहिए, जो हर मेहनती कलाकार का अधिकार है।