भारत बनाम Çelebi एविएशन: क्या राष्ट्रीय सुरक्षा से बड़ा कुछ और हो सकता है?

भारत की सुरक्षा नीति एक बार फिर न्यायपालिका के फैसले के बाद चर्चा में आ गई है। तुर्की की एविएशन कंपनी Çelebi Aviation, जो भारत के कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर ग्राउंड हैंडलिंग सेवाएं दे रही थी, उसकी सुरक्षा मंजूरी भारत सरकार द्वारा 15 मई 2025 को रद्द कर दी गई थी। इसका मुख्य कारण यह बताया गया कि तुर्की लगातार पाकिस्तान को सैन्य सहायता दे रहा है और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा है। खासकर जब तुर्की ने हाल ही में अपना सबसे बड़ा युद्धपोत कराची बंदरगाह पर भेजा, तब भारत की जनता और रक्षा विशेषज्ञों में गहरी चिंता देखी गई।



सरकार के इस कदम को देशहित में उठाया गया एक सशक्त निर्णय माना गया। दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद जैसे बड़े हवाई अड्डों ने तुरंत Çelebi से अपने अनुबंध रद्द कर दिए। लेकिन कंपनी ने इस फैसले को बॉम्बे और दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। Çelebi ने यह दावा किया कि वह भारत में 17 वर्षों से कार्यरत है, उसके कर्मचारी भारतीय हैं और वह भारतीय कानून का पालन करती है। इसके अलावा, कंपनी ने यह भी कहा कि उसे अचानक बिना कोई पूर्व सूचना दिए सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी गई, जो कि उसके व्यापार और निवेशकों के हितों पर सीधा हमला है।

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने 26 मई 2025 को एक अंतरिम राहत प्रदान करते हुए मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (MIAL) को निर्देश दिया कि जब तक अदालत अंतिम निर्णय न दे दे, तब तक वे नए ग्राउंड हैंडलिंग टेंडर को अंतिम रूप न दें। यह आदेश भारत सरकार के निर्णय पर एक प्रकार से रोक ही है, जिसने सुरक्षा नीति को ध्यान में रखते हुए कार्यवाही की थी।

सरकार का पक्ष स्पष्ट था – किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि होती है और सरकार को यह अधिकार है कि वह बिना पूर्व सूचना के भी राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर कदम उठा सके। भारत सरकार के वकील ने अदालत में यह भी कहा कि तुर्की का भारत के प्रति लगातार शत्रुतापूर्ण रुख और पाकिस्तान के साथ उसकी सैन्य निकटता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

यह मामला केवल एक कंपनी से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह भारत की संप्रभुता, नीति-निर्धारण और न्यायपालिका की भूमिका से जुड़ा हुआ है। एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न है, तो दूसरी ओर विदेशी निवेश और कंपनियों के संवैधानिक अधिकार। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या एक विदेशी कंपनी, जो दुश्मन देश से संबंध रखती है, उसे भारतीय हवाई अड्डों की सुरक्षा से जुड़ा काम सौंपना उचित है?

यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि Çelebi तुर्की की वही कंपनी है, जिसके देश ने भारत के खिलाफ खुले तौर पर पाकिस्तान की सैन्य मदद की है। ऐसे में यह बहस जरूरी है कि क्या भारत की न्यायपालिका को राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में इतना हस्तक्षेप करना चाहिए? सरकार चाहे तो इस आदेश को चुनौती दे सकती है, क्योंकि यह पॉलिसी मैटर है। लेकिन क्या भारत सरकार इस बार न्यायपालिका से टकराने का साहस दिखाएगी?

इस पूरे प्रकरण ने देशभर में यह बहस फिर से जगा दी है कि क्या विदेशी कंपनियों को देश की रक्षा-संवेदनशील सुविधाओं तक पहुंच देना उचित है, खासकर तब जब उनके देशों का भारत के खिलाफ रुख स्पष्ट हो? यह मामला एक मिसाल बन सकता है – कि जब बात देश की सुरक्षा की हो, तो किसी भी कानून या न्यायिक प्रक्रिया से ऊपर केवल राष्ट्रहित होना चाहिए।

इस पर अधिक जानकारी के लिए आप Times of India और Reuters के विस्तृत रिपोर्ट पढ़ सकते हैं।